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पा-पुराण
भया बाहनते उतर गोडे धरती लगाय हाथ जोड शीश नवाय अति नम्रीभूत होय परम विनय मू कहता भया-हे नाथ ! मैं आपका भक्त हूं कछु एक मेरी नती सुनो-तुम सारिखेनिका संसर्ग हम सारिखनिके दुखका क्षय वरनहारा है, वाने आधी कही आप सारी समझ गये ताके मस्तकपर हाथ धर कहते भए तू डरे मत, हमारे पीछे खडा रह, तब वह नमस्कार कर अति आश्चर्यको प्राप्त होय कहता भवा-हे प्रभों ! यह खरदूषण शत्रु महाशक्तिको धरे है याहि आप निवारो अर सेनाके योधानिकर मैं लगा ऐसा कह खरदूषणके योद्धानि विराधित लडने लगा। दौड कर तिनके कटक पर पड', अपनी सेना सहित झलझलाट करहैं आयुधनिके समूह ताके, विराधित तिनकू प्रगट कहता भया- मैं राजा चन्द्रोदयका पुत्र विराधित घने दिननि में पिताका वैर लेने आया हूं । युद्धका अभिलाषी अब तुम कहां जावो हो, जो युद्ध में प्रवीण हो तो खडे रहो, मैं ऐसा भयंकर फल दंगा जैसा यम देय ऐसा कहा तब तिन योद्धानिके पर इनके महा संग्राम भया अनेक सुमट दोऊ सेनानिके मारे गये। पियारे प्यादेनिस घोडनके असवार घोडनकं असवारन हाथीनिक असवार हाथीनिके असवारन रथी रथीन परस्पर हर्षित होय युद्ध करते भए । वह वाहि वुलावे वह वाहि बुलावे या भांति परस्पर युद्ध कर दशों दिशानको वाणनकर आछादित करते भए।
अथानन्तर लक्ष्मण अर खरदूषणका महा युद्ध भया जैसा इन्द्र और असुरेन्द्र के युद्ध होय, ता समय खरक्षण क्रोधकर लक्ष्मणसे लाल नेत्र कर कहता भया मेरा पुत्र निर्धर सो तूने हणा अर हे चपल, तूने मेरी कांताके कुचपर्दन किये सो मेरो दृष्टिसे कहां जायगा ? आज तीक्ष्ण वाणनिकर तेरे प्राण हरूगा जैसे कर्म किये तिनका फल भोगवेगा, हे क्षुद्र निर्लज्ज परस्त्रीसंगलोलुपी, मेरे सन्मुख आयकर परलोक जा। तब ताके कठोर बचनकर प्रज्वलित भया है मन जाका सो लक्ष्मण वचन कर सकल आकाशको पूरता संता कहता भया--अरे बुद्र, वृथा काहे गाजे है जहां तेरा पुत्र गया वहां तोहि पठाऊंगा, ऐसा कहकर आकाशकेविगै तिष्ठता जो खरदूषण ताहि लक्ष्मणने स्थरहित किया । अर ताका धनुष तोडा अर ध्वजा उडाय दई अर प्रभा रहित किया तब वह क्रोध कर भरा पृथितीकविष पडा जैसे क्षीणपुण्य भएं देव स्वर्गते पडे बहुरि महा स्भट वडग लेय लक्ष्मणपर आया तब लक्ष्मण सूर्यहास खड्ग लेप ताके सन्मुख भया इन दोउनि में नानाप्रकार महायुद्ध भया देवं पुष्पवृष्टि करते भये अर धन्य थन्य शब्द करते भए बहुरि महा युद्धके विष सूर्यहास खडगकर लक्ष्मण ने खरदूषण का सिर काटा सो निर्जीव होय खरदूषण पृथिवीपर पडा मानों स्वर्गसे देव गिरा, सूर्यमान है तेज जाका, मानों रत्न पर्वतका शिखर दिग्गजने दाहा।
अथानन्तर खरदूषण का सेनापति दूषण विराधित को रथ रहित करने को आरम्भता भया तब लक्ष्मणने वाणकरि मर्मस्थल को घायल किया सो घूमता भूमि में पडा अर लक्ष्मण ने खरदक्षणका समुदाय अर कटक अर पाताल लंकापुरी विराधित को दीनी अर लक्ष्मण प्रतिस्नेहका भरा जहां राम तिष्ठे हैं वहां आया आयकर देखे तो आप भूमिमें पडे हैं अर
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