SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३४ पद्म पुराण रहित हैं सो या लाकमें ज्ञानरूप सूर्यके प्रकाशकर योग्य अयोग्यको जान अयोग्यके त्यागी होय योग्य क्रिया में प्रवृत्ते हैं ।।। - इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविष शंयूकका बध वर्णन करनेवाला तेतालीसवां पर्व पूर्ण भया ।। ४३ ॥ अथानन्तर जैसे हृदका तट फूट जाय अर जलका प्रवाह विस्तारको प्राप्त होय तैसे खरदूषणकी स्त्रीका राम लक्ष्मणसे राग उपजा हुता सो उनकी अवांछाते विध्वंस भया । तप शोकका प्रवाह प्रकट भया, अतिव्याकुल होय नानाप्रकार विलाप करती भई, अरतिरूप अग्निकर तप्तायमान है अंग जाका, जैसे बछडे विना गाय विलाप करे, तैसे शोक करती भई झरे हैं नेत्रनिके आंसू जाके सो विलाप करती पति देखी, नष्ट भया है धीयं जाका भर धूरकर धमरा है अंग जाका, विखर रहे हैं केशनिके समूह जाके पर शिथिल होय रही है कटिमेखला जाकी अर नखनिकरि विदारे गये हैं वक्षस्थल कुच अर जंघा जाकी सो रुधिरसे भारत हैं पर आवरण हित लावण्यता रहित अर फट गई है चोली जाकी जेसे माते हाथीने कमलनीको दलमली होय तैती याहि देख पति धीर्य बन्धाय पूछता भया-हे कांते ! कौन दुष्टने तोहि ऐसी अवस्थाको प्राप्त करी सो कहो वह कौन है जाहि आज आठवा चंद्रमा है अथवा मरण ताके निकट आया है। वह मूढ पहाडके शिखरपर चढ सोवे है, सूर्यसे क्रीडाकर अंधकूपमें पडे है। दैव तास रूमा है, मेरी क्रोधरूप अग्निमें पतंगकी नाई पडेगा । धिक्कार ता पापी अविवेकीको वह पशुपमान अपवित्र अनीतियुक्त यह लोक परलोक भ्रट, जाने तोहि दुखाई, तू वडवानलकी शिखा समान है । रुदन मत कर और स्त्रिनि सारखी तू नाहीं । बडे बंशकी पुत्री बडे घर परणी आई है । अबही ता दुराचारीको हस्त तलते हण परलोकको प्राप्त करूंगा जैसे सिंह उन्मत्तहाथीको हणे या भांति जब पतिने कही तव चंद्रनखा महा कष्ट थकी रुदन तज गद गद वासी सकहती भई, अलकनिकर आच्छादित हैं कपोल जाके, हे नाथ ! मैं पुत्रके देखनेको वनविष नित्य जाती हुती सो आज पुत्र का मस्तक कटा भूमिमें पडा देखा पर रुधिरकी धाराकर बांसोंका बीडा प्रारक्त देखा काहू पापीने मेरे पुत्रको मार खडग रत्न लिया । कैसा है खडग देवनिकर सेवने योग्य, सो मैं अनेक दुखनिका भाजन भाग्यरहित पुत्रका मस्तक गोद में लेय विलाप करती भई सो जा पापीने संबूकको मारा हुता ताने मोसे अनीति विचारी, भुजानिकरि पकडी, कही मोहि छड सो पापी नीचकुली छाडे नाही नखनिकरि दांतनिकरविदारी निर्जन वनविषै मैं अकेली वह बलवान पुरुष ; मैं अबला तथापि पूर्व पुण्यसे शील वचाय महाकष्टते मैं यहां आई सर्व विद्याधरनिका स्वामी तीनखण्डका अधिपति तीनलोकविर्ष प्रसिद्ध रावण काहसे न जीता जाय सो मेरा भाई अर तुम खरदूषण नामा महाराजा दैत्यजातिके जे विद्याधर तिनके अधिपति मेरे भरत र तथापि मैं दैवयोगले या अवस्थाको प्राप्त भई । ऐसे चन्द्रनखाके वचन सुन महा क्रोधकर तत्काल जहां पुत्रका शरीर मृतक पडा हुता तहां गया सो भूवा देखकर अति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy