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पद्मपुराण रही, आकाशविर्ष नक्षत्रनिका प्रकाश भया । दशों दिशाविष अंधकार फैल गया । ता समय असुरकी मायाकरि महा रौद्र भूतनिके गण हड हड हंसते भये, महा भयंकर हैं मुख जिनके अर राक्षस खोटे शब्द करते भए अर मायामई स्यालनी मुखते भयानक अग्निकी ज्वाला काढनी शब्द बोलती भई अर सैकडों कलेवर भयकारी नृत्य करते भये, मस्तक भुजा जंघादि अंगनिकी वृष्टि होती भई । अर दुर्गध सहित स्थूल द ल हूकी बरसती भई अर डाकिनी नग्न स्वरूप लावें हाडोंके आभरण पहिरे, क्रूर हैं शरीर जिनके, हाले हैं स्तन जिनके खड्ग है हाथमें जिनके वे दृष्टिविणे श्रावती भई, अर सिंह व्याघ्रादिककेसे मुख तप्त लोह समान लोचन हस्तविणे त्रिशूल धारे, होठ डसते कुटिल हैं भौंह जिनकी, कठोर हैं शब्द जिनके, ऐसे अनेक पिशाच नृत्य करते भए । र्वत की शिला कम्पायमान भई अर भूकम्प भगा इत्यादि चेष्टा असुरने करी, सो मुनि शुक्लध्यानपि मग्न किछु न ज नते भए । ये चेष्टा देख जानकी भयको प्राप्त भई, पति के अंगसे लग गई, तब श्रीराम कहते भए-हे देवी ! भय मत करहु. सर्व विनके हरणहारे जे मुनिके चरण तिनके शरण ग हु, ऐसा कहकर सीताको मुनिके पांयन मेल आप लक्ष्मण सहित धनुष हाथ वषे लिये महावली मेघपमान गजे, धनुषके चढायबेका ऐसा शब्द भया जैसा वज्रपातका ब्द होय, तब वह अग्निप्रभ न मा असुर इन दोऊ वीरनिको बलभद्र नारायण जान भाग गग, वाकी सर्व चष्टा दिलाय गई । श्रीराम लक्ष्म ने मुनिका उपसर्ग दर किया, तत्काल देशभूपण कुलभूषण मुनिनिको केवल ज्ञान उपजा, चतुरनिकायक दे दर्शनको आए, विधिपूर्वक नमस्कार कर यथायोग्य बैडे । के लबानके प्रतापते कवलीके निकट रात दिनका भेद न रहे। भूमेनोचरी अर विद्य पर केवली की पूजा कर यथ योग्य बठे, सुर नर विद्याधर सब ही धर्मोपदेश श्रवण करते भए राम लक्षण हरित चित्त, सीता सहित केलीकी पूजाकर हाथ जोड नमस्कारकर पूछो भये ।।
हे भगवन् ! असुरने आपकू कौन कारण उपसर्ग किया अर तुम दोऊनिमें परस्पर अति स्नेह काहेते भया । तब केवलीकी दिव्य नि होति भई-पद्मनी नामा नगरीविणै राजा विजथपर्वत गुणरूप धान्यके उपजिवेका उत्तमक्षेत्र जाके धारणीनामा स्त्री अर अमृतसुर नामा दूत, सर्व शास्त्रनिविष प्रवीण राज काजविषे निपुण लोकरीतिको जाने पर जाको गुण ही प्रिय जाके उपभोगनामा स्त्री ताकी कुक्षि विर्ष उपजे उादेत मुदित नामा दोय पुत्र व्याहारमें प्रवीण सो अमृतसुर नामा दूतको राजाने कार्य निमित्त बाहिर भेजा सो वह स्वामीभक्त वसुभूति मित्र सहित चला। वसुभूति पापी याकी स्त्री आसक्त दुष्टचित्त सो रात्रिमें अमृतसुर को खड़ग से मार नगरी में बापिस आया लोगनिने कही-मांहि वापिस भेज दिया है अर ताकी स्त्री उपभोगा तासे यथार्थ वृत्तांत कहा तब वह कहती भई-मेरे दोऊ पुत्रनिको भी मारि जो हम दोऊ निश्चिन्त तिष्ठे सो यह वार्ता उदितकी बहूने सुनी अर सर्व वृत्तान्त उदितसे कहा । यह बहू सास के चरित्रको पहिले भी जानती हुती याको वसुभूति की बहूने समाचार कहे हुते जो परदाराके सेवनते पतिसे विरक्त हुती सो उदित ने सब बातोंते सावधान होय मुदितको भी सावधान किया भर
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