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पर नारिनिके आलाप सुनते सबको मोहित करते वे स्वेच्छा विहारी शुद्ध है चिच जिनके, नाना देशनिविषै विहार करते क्षेमांजलि नामा नगरविषै आए ताके निकट कारी घटा समान सघन वनविषै सुखसे तिष्ठे जैसे सौमनस वनमें देव तिष्ठै, तहां लक्ष्मण महासुन्दर अन्न भर अनेक व्यंजन तैयार किये अर दाखोंका रस सो श्रीराम सीताने लक्ष्मणनहित भोजन किया ॥
अथानन्तर लक्ष्मण श्रीराम की आज्ञा लेय क्ष मांजलि नाम पुरके देखने को चले, महासुंदर माला पहिरे पर पीताम्बर धारे मुन्दर है रूप जिनका, नानाप्रकार की बेल वृक्ष तिनकरि युक्त वन र निर्मल जलकी भरी नदी पर नानाप्रकारके क्रीडागिरि अनेक धातुके भरे अर ऊंचे ऊंचे जिनमंदिर पर मनोहर जलके निवान अर नानाप्रकारके लोक तिनको देख नगरवि प्रवेश किया | कैसा है नगर, नानाप्रकार के व्यापारकर पूर्ण सो नगरके लोक इनका अद्भुत रूप देख परस्पर बार्ता करते भए, तिनके शब्द इतने सुने जो या नगरके राजाके जितपद्मानामा पुत्री है ताहि वह पर जो राजाके हाथकी शक्तिकी चोट को खाय जीवतः बचे, सो कन्याकी कहा बात स्वर्गका राज्य देय तौ भी यह बात कोई न करे । शक्ति की चोटते प्राण ही जांय तर कन्या कौन अर्थ ? जगतत्विषै जीतव्य सर्व वस्तुते प्रिय है तातें कन्या के अर्थ प्राण कौन देय, यह वचन सुनकर महाकौतुकी लक्ष्मण काहूको पूछते भए - हे भद्र ! यह जितपद्मा कौन है ? तत्र वह कहता भया - यह कालकन्या पंडितमाननीय सर्व लोक प्रसिद्ध तुमने कहा न सुनी । या नगरका राजा शत्रुदमन जाके राणी कनकप्रभा ताके जितपद्मा पुत्री रूपवती गुणवंती जाके बदन की कांतिकरि कमल जीता है अर गातकी शोभाकर कमलनी जीती सो त जितपमा aria है। नवयौवन मंडित सर्व कला पूर्ण अद्भुत आभूषणकी थरणहारी ताहि पुरुषका नाम रुचै नाहीं, देवनिका दर्शन हू अप्रिय मनुष्यनिकी तो कहा बात? जाके निकट कोई पुल्लिंग शब्दका उच्चारण हू न कर सके, यह कैलाशके शिखर समान जो उज्ज्वल मंदिर ताविषै कन्या है । सैकड़ों सहेली जाकी सेवा करें हैं जो कोई कन्याके पिताके हाथकी शक्तिकी चोटते बचे ताहि कन्या बरे । लक्ष्मण यह वार्ता सुन आश्चर्यको प्राप्त भया अर कोप हू उपजा, मन विचारी महाविंत दुष्ट चेष्टासंयुक्त यह कन्या ताहि देखूं, यह चितवन कर राजमार्ग होय विमान समान सुन्दर घर देखता अर मदोन्मत्त हाथी कारी घटा समान पर तुरंग चंचल अवलोकता अर नृत्यशाला निरखता राजमंदिरविषै गया । कैसा है राजमंदिर ? अनेक प्रकार के झरोखानिकर शोभित नानाप्रकार ध्वजानिकर मंडित शरद के बादर समान उज्ज्वल महामनोहर रचनाकर संयुक्त ऊंचे कोटकर चेष्टित, सो लक्ष्मण जाय द्वारपर ठाढा भया, इन्द्रके धनुष समान अनेक वर्णका है तोरण जहां, जहां सुपटनिके समूह अनेक देशनिके नानाप्रकार भेट लेकर आए हैं, कोई निकसे हैं कोई जाय हैं, सामन्तनिकी भीड होय रही है । लक्ष्मण को द्वारमें प्रवेश करता देख द्वारपाल सौम्य बाणीसू कहता भया - तुम कौन हो अर कौन की श्रज्ञाते आए हो ? कौन प्रयोजन राजमंदिर में प्रवेश करो हो ? तब कुमारने कही राजा को देखा चाहे हैं तू जाय राजासों पूछ, तब वह द्वारपाल अपनी ठौर दुजेको राख आप राजासे जाय विनती करता मया ।
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