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पद्म-पुराण
मोहि काहकी भेंट देगा । अब मेरा जीवन नाहीं, यह विचार सो बालखिल्य मर्चित चला आगे राम लक्ष्मणको देख परम हर्षित भया । रथते उतर आय नमस्कार किया और कहता भया हे नाथ, मेरे पुण्यके योगते आप पधारे, मोहि बंधनते बुडागा । आप महासुन्दर इंद्र तुल्य पुरुष हो, तब रामने आज्ञा करी तू अपने स्थानक जहु, कुबते मिलहु तब बालखिल्य रामको प्रणाम कर रौद्रभूतसहित अपने नगर गया। श्रीराम बाल खिल्यको छुडाय रौद्रदास करि वहांते चाले सो बालखिल्यको आमा सुनकर कल्याणमाला महाविभूति सहित सन्मुख आई अर नगर में महा उत्साह भया, राजा राजकुमारको उरसे लगाया अपनी अलवारीमें चढाया नगरविर्षे प्रवेश किया, राणी पृथिवीके हर्षसे रोमांच होय आये, जैना आगे शरीर सुन्दर हुना तैना पतिके आए भया । सिंहोदरको आदि देय बालखिल्य के हितकारी सब ही प्रसन्न भए र कल्याणमाला पुत्रीने एते दिवस पुरुषका भेष कर राज थाम्भा हुन सों या बातका सबको आश्चर्य भया, यह कथा राजा श्रेणि गोतमस्वामी हैं हैं - हे नराधिप, वह रौद्रभूत परद्रव्यका हरणहाराअनेक देशनिका कंटक सो श्रीराम के प्रतापते बालखिल्यका आज्ञाकारी सेवक भया । जब रौद्रभूत वशीभूत भया अर म्लेच्छ की विषम भूमिमें वालखिल्य की आज्ञा प्रवर्ती तब सिंहोदर भी शंका मानता भया र स्नेहसहित सन्मान करता भया, बालखिल्य रघुपति के प्रसादते परम विभूति पाय जैसा शरद ऋतु सूर्य नकारा करे तैा पृथिवीविषै प्रकाश करता भया अपनी राणी सहित देवोंकी न्याई रमता भवा ॥
इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वाचनिकावि म्लेच्छनिके राजा रौद्रभूतिका ठान करनेवाला चौतीसवां पर्व पूर्ण भया ॥ ३४ ॥
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अथानन्तर राम लक्ष्मण देवनि सारिखे मनोहर नंदनवन ताविषै सुखसे विहार करते एक मनोग्य देशविषै आय निकसे जाके मध्य तापती नदी बहे, नाना प्रकार के पक्षिनिके शब्द करि सुन्दर, तहां एक निर्जन वनमें सीता तृषाकर अत्यंत खेदखिन्न भई तब पतिको कहती भई । हे नाथ ! तृषा से मेरा कंठ शोषै है जैसे अनन्त भवके भ्रमण कर खेदखिन्न हुआ भव्यजीव सम्यकदर्शनको बांधे तैसे मैं तृपासे व्याकुल शीतल जलको बांछू हूं ऐसा कहकर एक वृक्ष के नीचे बैठ गई, तब रामने कही - हे देवी ! हे शुभे ! तू विषादको मत प्राप्त होय, नजीक ही यह आगे ग्राम है जहां सुन्दर मंदिर है, उठ आगे चल या ग्राममें तोहि शीतल जलकी प्राप्ति होयगी, एसा. जब कहा तब उठकर सीता चली मंद मंद गमन करती गजगामिनी ता सहित दोऊ भाई अरु नामा ग्राम में आए जहां महाधनवान किसान रहैं, जहां एक ब्राह्मण अग्निहोत्री कपिलनामा प्रसिद्ध ताके घर में आय उत्तरे ताकी अग्निहोत्री की शाला में क्षण एक बैठ खेद निवारा । कपिल की ब्राह्मणी जल लाई सो सीता पिया, सहां विराजे र वनते ब्राह्मण विश्व तथा छीला वा खेचडा इत्यादि काष्ठका भार बांधे आया, दावानल समान प्रज्वलित जाका मन महा क्रोधी कालकूट विष समान वचन बोलता भया । उल्लू समान है मुख जाका अर करमें कमण्डलु चोटी में
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