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________________ AAR तेतीसवा पर्व सुना है जो निःशंक चले जावो हो? तब राम कहते भए-अहो तापासिनी हो! हम अवश्य आगे जावेगे तुम अपने स्थानक जाबो । कठिनतातै तिनको पाछे फेरी, ते परस्पर इनके गुण रूपका वर्णन करतीं अपने स्थानक आई, ये महागह वनमें प्रवेश करते भए । कैसा है वह वन १ पर्वतके पाषाणनिक समूहकार महाकर्कश अर बडे बडे जे वृक्ष तिनपर श्रारूढ हैं बेलनिके समूह जहां, अर सुधाकर अति क्रोधायमान जे शार्दूल तिनके नखनिकर विदारे गये हैं वृक्ष जहां, पर सिंहनि कर हते गए जे गजराज तिनके रुधिर कर रक्त भए जो मोनी सो ठोर ठोर विखर रहै हैं मर माते जे गजराज तिन कर भग्न भए हैं तार जहां, अर सिंहनिकी ध्वनि सुनकर भाग रहे हैं कुरंग जहाँ अर सूते जे अजगर तिनके श्वासनिकी पवन करि गूंज रही है गुफा जहां, शूकरनिके समूह कर कर्दमरूप होय रहे हैं तुच्छ सरोवर जहां पर महा अरण्य भैंसे तिनके सींगनिकर भग्न भए हैं चवड्यानिके स्थान जहां फणको ऊचे किये फिरे है भयानक सर्प जहां अर कांटनिकर बींधा हैं पूछका अग्रभाग जिनका ऐसी जे मुरहगाय सो खेदखिन्न भई हैं अर फैल रहे हैं कटेरी आदि अनेक प्रकारके कंटक जहां पर पुष्पनिकी रजकी वासना कर घमें हैं अनेक प्राणी जहां पर गैंडानिके नखनिकर विदारे गए हैं वृक्षनिके पींड अर भ्रमते रोझनके समूह तिनकर भग्न भए हैं पल्लवनिके समूह जहां अर नाना प्रकारके जे पक्षिनिके समूह तिनके जो क्रूर शब्द उन कर नन गंज रहा है अर बंदरनिके समूह तिनके कृदनेकर कम्पायमान हैं वृक्षनिकी शाखा जहां अर तीत्र वेगको थरें पर्वतसे उतरती जे नदी तिनकर पृथ्वीमें पड़ गया है दहाना जहां पर वृक्षनिके पल्लवनिकर नाही दीखे है सूर्यको किरण जहां अर नानाप्रकारके फल फूल तिनकर "भरा अनेक प्रकारकी फैल रही सुगंध है जहो, नाना प्रकारकी जे औषधि तिनकर पूर्ण भर वनके जे धान्य तिनकर पूरित कहूं एक नील कहूं एक पीत कहूं एक रक्त कहूं एक हरित, नानाप्रकार वर्णको धरे जो वन तामैं दोऊ वीर प्रवेश करते भए । चित्रकूट पर्वतके महा मनोहर जे नीझरने तिनविष क्रीडा करते वनकी अनेक सुन्दर वस्तु देखते परस्पर दोऊ भाई बात करते वनके मिष्टफल आस्वादन करते किन्नर देवनिके हू मनको हरें ऐता मनोहर गान करते पुष्यनिके परस्पर प्राभूषण वनावते सुगंध द्रव्य अंगविर्षे लगावते, फूल रहे हैं सुन्दर नेत्र जिनके स्वच्छन्द अत्यंत शोभाके धरणहारे सुरनर नागनिके मनके हरम हारे नेत्रनिको प्यारे उपवनकी नाई भीम वनमें रमते भए । अनेक प्रकारके सुन्दर जे लतामंडप तिनमें विश्राम करते नानाप्रकारकी कथा करते विनोद करते रहस्यकी बातें करते जैसे नन्दनवनमें देव भ्रमण करें वैसे अतिरमणीक लीलासू वन विहार करते भए। :: : 'अथानन्तर साढे चार मासमें मालव देशविणे आए सो देश अत्यन्त सुन्दर नानाप्रकारके धान्योंकर शोभित जहां ग्राम पट्टन घने सो केतीक दर आयकर देखें तो वस्ती नाही तब एक बटकी छायामें दोऊ भाई परस्पर बदलावते भए जो काहेते यह देश ऊजडा दीखे है ? नानाप्रकारके क्षेत्र फल रहे हैं अर मनुष्य नाही, नानाप्रकारके वृक्ष फल फूलनकर शोभित हैं अर पौडे सांठेके बाड़ बहुत हैं. अर सरोवरनिमें कमल फूल रहे हैं। नानाप्रकारके पक्षी केलिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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