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पच-पुराण रत्न समान यतिका धर्म जाकी महिमा कहनेविौ न आवे ताहि जे धारे हैं तिनकी उपमा कौन की देहि । यतिके थर्मते उतरता श्रावकका धर्म है सो जे प्रमादरहित करे हैं ते धन्य हैं । यह अणुव्रत हू प्रबोधका दाता है जैसे रत्नद्वीपविणे कोऊ मनुष्य गया अर वह जी रत्न लेय सोई देशान्तरविणै दुर्लभ है तैसे जिनधर्म नियमरूप रत्ननिका द्वीप है। ताविणे जो नियम लेय सोई महाफलका दाता है जो अहिंसारूप रत्नको अङ्गीकारकर जिनसरको भक्तिकर भरचे सो सुरनर के सुख भोग मोक्षको प्राप्त होय अर जो सत्यव्रतका धारक मिथ्यात्वका परिहारकर भावरूप पुष्पनिकी मालाकर जिनेश्वरको पूजे है ताकी की िपृथिवीविणे विस्तरै हैं अर प्राज्ञा कोई लोप न सके अर जो परधनका त्यागी जिनेन्द्रको उरविणे धारे, वारम्बार जिनेन्द्रको नमस्कार करे सो नव निधि चौदह रत्नका स्वामी होय अक्षयनिधि पावे पर जो जिनराजका मार्ग अंगी. कारकर पर नारीका त्याग करे सो सबके नेत्रनिको आनन्दकारी मोक्ष लक्ष्मीको वर होय भर जो परिग्रहका प्रमाण कर संतोष धर जिनपतिका ध्यान करे सो लोकपूजित अनन्त महिमाको पावे अर आहारदानके पुण्य कर महा सुखी होय ताकी सब सेवा कर अर अभयदानकर निर्भय पद पावे। सर्व उपद्रवते रहित होय अर ज्ञान दानकर केवलज्ञानी होय सर्वज्ञपद पावे अर औषधि दानके प्रभावकर रोगरहित निर्भयपद पावे अर जो रात्रीको आहारका त्याग करे सो एक वर्षविणे छह महीना उपवासका फल पावे यद्यपि गृहस्थ घरके प्रारम्भविष प्रवृत्त है तो हु शुभगतिके सुख पावे जो त्रिकाल जिनदेवकी बंदना करे ताके भाव निर्मल होंय, सर्व पापका नाश करे श्रर जो निर्मल भावरूप पहुपनिकर जिननाथको पूजै सो लोकवि पूजनीक होय पर जो भोगी पुरुष कमलादिक जलके पुप तथा केतकी मालती आदि पृथ्वीके सुगन्ध पुष्पनिकर भगवानको अरचे सो पुष्पकविमानको पाय यथेष्ट क्रीडा करे भर जो जिनराज पर अगर चंदनादि धूप खेवे सो सुगंध शरीरका धारक होय पर जो जिनभवनविष विवेकसहित दीपोद्योत करे सो देवलोकविर्ष प्रभावसंयुक्त शरीर पावे अर जो जिनभवनविष छत्र घमर झालरी पताका दर्पणादि मंगल द्रव्य चढावे अर जिनमन्दिरको शोभित करे सो आश्चर्यकारी विभूति पावे अर जो जल चंदनादिते जिन पूजा करे सो देवनिका स्वामी होय महा निर्मल सुगंध शरीर जे देवांगना तिनका वल्लभ होय अर जो नीरकर जिनेन्द्रका अभिषेक करे सो देवनिकर मनुष्यनिते सेवनीक चक्रवर्ती होय, जाका राज्याभिषेक देव विद्याधर करें और जो दुग्धकरि अरहन्तका अभिषेक करे सो क्षीरसागरके जलसमान उज्ज्वल विमानमें परम कांति थारक देव होय बहुरि मनुष्य होय भोक्ष पावै पर जो दधिकर सर्वज्ञ वीतरागका अभिषेक करें सो दधि समान उज्ज्वल यशको पायकर भवोद धको तरे अर जी घृतकर जिननाथ का अभिषेक करै सो स्वर्ग विमानमें महाबलवान देव होय परंपराय अनंत वीर्य थारै अर जो ईखरसकर जिननाथका अभिषेक करे सो अमृतका आहारी सुरेश्वर पद होय नरेश्वर प य मुनीश्वर होय अविनश्वर पद पावे, अभिष कके प्रभावकार अनेक भव्यजीव देव अर इन्द्रनिकरि अभिषेक पावते भए, तिनकी कथा पुराणनिमें प्रसिद्ध है जो भक्तिकर जिनमन्दिरमें मयूर पिच्छादिकर बुहारी देय सो पापरूप
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