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पछी-पुराण
मार मार मुझे प्याया अर अनेकवार सुर नर गतिविणै मनके हरनहारे सुन्दररूप देखे घर मुन्दररूप धारे अर अनेकवार नरकविणे महाकुरूप धारे अर नानाप्रकार त्रास देखे, कैयक वार राजपद देवपदविणे नानाप्रकारके सुगंध सूघे तिनपर भ्रमर गंजार करें अर कैयक बार नरककी महादुगंध सूची अर अनेक चार मनुष्य तथा देवगतिविणै महालीलाकी थरणहारी वस्त्राभरण मंडित मनकी चोरणहारी जे नारी तिनसों आलिंगन कीया पर बहुत बार नरकनिविपै इटशा. न्मलि वृक्ष जिनके तीक्ष्ण कंटक अर प्रज्वलिती लोहकी पुतलीनिसे स्पर्श किया, या संसारविगै कर्मनिके संयोगते मैं कहा कहा न देखा, कहा कहा न सूघा, कहा कहा न सुना, कहा कहान खाया अर पृथिवीकाय जलकाय अग्निकाय वायुकाय वनस्पतिकाय त्रसकायविगै असा देह नाही जो मैं न धारा, तीनलोकविणे असा जीव नाहीं जासू मेरे अनेक नाते न भए, ये पुत्र मेरे कईबार पिता भए माता भए, शत्रु भए, मित्र भए, औसा स्थानक नाहीं जहां मैं न उपजान मुआ, ये देह भोगादिक अनित्य या जगतविष कोई शरण नाहीं, यह चतुर्गति रूप संसार दुःखका निवास है, मैं सदा अकेला हूं, ये पटद्रव्य परस्पर सब ही भिन्न हैं, यह काय अशुचि, मैं पवित्र ये मिथ्यात्वादि अब्रतादिकर्म आश्रवके कारण हैं, सम्यकत्व ब्रत संयमादि संवरके कारण हैं । तपकर निर्जरा होय है । यह लोक न नारूप मेरे स्वरूपते भिन्न या जगतविणे आत्मज्ञान दुर्लभ है, अर वस्तुका जो स्वभाव सोई थर्ग तथा जीवदया धर्म सो मैं महाभाग्यतें पाया, धन्य ये मुनि जिनके उपदेशते मोक्षमार्ग पाया सो अब पुत्रनिकी वाहः चिंता, असा विचार कर दशरथ मुनि निर्मोह दशाको प्राप्त भए, मिन देशों में पश्लेि हाथी चमर दुरते छत्र फिरते हुते पर महारण संग्रामविष उद्धत बैरिनिको जीते तिन देशनिविर्ष निग्रंथ दशा धरे बाइस परीषह जीतते शांतिमाव संयुक्त विहार करते भए । अर कौशल्या तथा सुमित्रा पतिके वैरागी भए अर पुत्रनिके विदेश गये महाशोकवंती भई, निरंतर अश्रुपात डरें तिनके दुःखको देख, भरत राज्य विभूतिको विषसमान मानता भया भर केकई तिनको दुखी देख उपजी है करुणा जाके पुत्रको कहती भई-हे पुत्र ! तू राज्य पाया, बडे बडे राजा सेवा करे हैं परंतु राम लक्ष्मण विना यह राज्य शोभे नाही सो वे दोऊ भाई महाधिनयवान उन विना कहा राज्य अर कहा सुख पर कहा देशकी शोभा अर कहा तेरी धर्मज्ञता? वे दोऊ कुमार अर वह सीता राजपुत्री सदा सुखके भोगनहारे पाषाणादिककर परित जे मार्ग ताविषे वाहन विना कैसे जावेंगे पर तिन गुणसमुद्रनिकी ये दोनों माता निरंतर रुदन करे हैं सो मरणको प्राप्त होंयगी तातें तुम शीघ्रगामी तुरंगपर चढ शितावी जावो उनको ले श्रावो, तिनसहित महासुखमों चिरकाल राज करियो पर मैं भी तेरे पीछेडी उनके पास आऊ हूं, यह माताकी आत्रा सुन बहुत प्रसन्न होय ताकी प्रशंसा कर अति प्रातुर भरत हजार अश्व सहित रामके निकट चला अर जे रामके समीपते वापिस पाऐ हुने तिनको संग ले चला, आप तेज तुरंग पर चढा उतावली चाल बनविष आया । वह नदी असरल बहती हुनी सौ तामें वृत्तनिके लट्ठे गेर बेडे बांध क्षणमात्रमें सेना सहिन पार उतरे, भागवीकार मारिनिसों पक्षो जाय जो तुम राम लक्ष्मण कहीं देखे । वे कहे हैं यहांते निकट ही है सो परत
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