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बत्तीस पणे चाहों ही राखी गुणरूप लावण्यताकर पूर्ण महामिष्टवादिनी पुत्रोंसे मिल पतिपै गई जायकर कहती भई कैसा है पति ? सुमेरुसमान निश्चल है भाव जका, राणी कहें हैं-हे देव ! कुलरूप जहाज शोकरूप समुद्रमें डूबे है सो थांपो । राम लक्ष्मणको पंछे लावो तब राजा कहते भए यह जगत विकाररूप मेरे प्राधीन नाहीं । मेरी इच्छा तो यह ही है कि सर्व जीवनिको सुख होय कोऊको भी दुःख न होय, जन्म मरणरूप पारथियोंकर कोई जीव पीडा न जाय परन्तु ये जीव नानाप्रकारके कर्मों की स्थितिको धरे हैं तातें कौन विवेकी वृथा शोक करे। बांधवादिक इष्टपदार्थनिके दर्शनविणे प्राणिनिको तृप्ति नाहीं तथा धन पर जीतव्य इनकरि तृप्ति नाही। इन्द्रियोंके सुख पूर्ण न होय सके अर आयु पूर्ण होय तब जीव देहको तज और जन्म धरे जैसे पक्षी बृक्षको तज चला जाय है तुम पुत्रनिकी माता हो पुत्रनिको ले भावी पुत्रनिको राज्यका उदय देख विश्रामको भजो। मैंने तो राज्यका अधिकार तजा, पाप क्रिया से निवृत्त भया । भव भ्रमणसे भयको प्राप्त भया । अब मैं मुनिव्रत थरूंगा । हे श्रेणिक ! या भांति राजा राणियोंको कहकर निर्मोहताक निश्चयको प्राप्त भया सकल विषियाभिलाषरूप दोषोंसे रहित सूर्य समान है वेज जाका सो पृथ्वीमें तप संयमका उद्योत करता भया। इति श्रीरविषेणोचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिकाविषे दशरथका वैराग्य
वर्णन करनेवाला इकत्तीसवां पर्व पूर्ण भया ।। ३ ।।
. अथानन्तर राम लक्ष्मण क्षण एक निद्राकर अर्धरात्रिके समय जब मनुष्य सोय रहे लोकनिका शब्द मिट गगा अर अंधकार फैल गया ता समय भगवानको नमस्कारकर बखतर पहिर धनुषवाण लेय सीताको बीचमें लेकर चले, घर घर दीपकनिका उद्योत होय रहा है, कामीजन अनेक चेष्टा करे हैं । ये दोऊ भाई महाप्रवीण नगरके द्वारकी खिडकीकी ओरसे विकसे, दक्षिण दिशाका पंथ लिया, रात्रिके अंतमें दोडकर सामंत लोक आय मिले। राधक्के संग चलनेकी है अभिलाषा जिनके, दूरते राम लक्ष्मणको देख म्हा विनयके भरे असवारी छोड प्यादे पाए, चरणारविंदको नमस्कारकरि निकट आय वचनालाप करते भए । बहुत सेना आई भर जानकीकी बहुत प्रशंसा करते भए जो याकं प्रसादते हम राम लक्षमणको आय मिले यह महोती तो ये धीरे धीरे न चलते तो हम कैसे पहुंचते, ये दोऊ भाई पक्न समान शीघ्रगामी हैंपर यह सीता महासती हमारी माता है । या समान प्रशंसा योग्य पृथ्वीविष और नाहीं। के दोऊ भाई नरोत्तम सीताकी चाल प्रमाण मंद मंद दो कोस चले। खेतनिविष नानाप्रकारके मनहरे होय रहे हैं अर सरोवरनिमें कमल फूल रहे हैं अर वृक्ष महारमणीक दीखे हैं। अनेक प्राममारादिमें ठौर २ लोक पूजे हैं भोजनादि सामग्री करि, अर बडे बडे राजा बडी फौजसे माप मिले जैसे वर्षाकालमें गंगा जमनाके प्रवाहविष अनेक नदियनिके प्रवाह प्राय मिलें। कि सामंत मार्गके खेदकर इनका निश्चय जान आज्ञा पाय पीछे गए पर कैएक खजजाकर एक भापकर बैएक भक्तिकर लार प्यादे चले जाय हैं सो राम लक्षमण कीस करते परियात्रा
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