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इकत्तीसवां पर्व
१६७ प्राणोंके राखिवे. समर्थ नाही, जे कुलवंती स्त्री हैं तिनके पिता अथवा पति पुत्र ये ही आश्रय है । सो पिता तो कालवश भया अर पति जिनदीक्षा लेयबेको उद्यमी भया है अब तो पुत्र हीका अवलंबन है, सो तुमहु छाड चाले तो मेरी कहा गति होगी। तब राम बोले-हे माता ! मार्गमें पाषाण अर कंटक बहुत हैं, तुम कैसे पावोंसे चलोगी ततै कोऊ सुखका स्थानकर असवारी भेज तुमको बुला लू गा । मोहि तिहारे चरणनि की सौगंध है तिहारे लेनेको मैं आऊंगा तुम चिंता मत करहु । ऐसे कह माताको शांतता उपजाय सीख करी । बहुरि पिताके पास गए। पिता मूर्छित होय गए हुते सो सचेत भए । पिताको प्रणाम कर दूसरी मातावोंपे गए सुमित्रा केकई सुप्रभा संवनिको प्रणामकर विदा हुए । कैसे हैं राम ? न्यायविणे प्रवीण निराकुल है चित जिनका, तथा भाई बंधु मंत्री अनेक राजा उमराव परिवारके लोक सबनिक शुभवचन कह विदा भए । सबनिको बहुत दिलासा कर छाती सों लगाय उनके आंसू पूछे । उनने धनी ही विनती करी जो यहां ही रहो सो न मानी । सामंत तथा हाथी घोडे रथ सबकी भोर कृपादृष्टि कर देखा बहुरि बडे बडे सामंत हाथी घोडे भेट लाए सो रामने न राखे । सीता अपने पतिको विदेश ममनको उद्यमी देख ससुर अर सासुनको प्रणाम करि नाथके संग चली जैसे शची इन्द्र के साथ चाले । लखमण स्नेहकरि पूर्ण रामको विदेश गमनको उद्यमी देख चित्तमें क्रोधकरि चिंतता भया--जो हमारे पिताने स्त्रीके कहेते यह कहा अन्याय कार्य विचारा जो रामको टार और को राज्य दिया। धिक्कार है स्त्रीनिक जो अनुचित काम करती शंका न करें, स्वार्थविणे पासक्त है चित्त जिनका, अर यह बड़ा भाई महानु पार पुरुषोत्तम है सो ऐसे परिणाम मुनिनि के होय हैं । अर मैं ऐसा समर्थ हूँ जो समस्त दुराचारिनिका पराभव कर भरतको राज्यलक्ष्पीते रहित करू' पर राज्यलक्ष्मी श्रीरामके वरणनिमें लाऊं यह बात उचित नाही, क्रोध महादुखदाई है जीवनिक अन्ध करे है । पिता जिनदीक्षाको उद्यमी भया पर मैं क्रोध उपजाऊ सो योग्य नाही पर मोहि ऐसे विचार कर कहा ? योग्य अर अयोग्य पिता जाने अथवा बड़ा भाई जाने जामें पिताकी कीर्ति उज्ज्वल होय झो कर्तव्य है । मोहि काहूको कछु न कहना मैं मौन पकड वडे भाईके संग जाऊंगा ? कैसा है यह भाई साधु समान है भाव जाके, ऐमा विचार कर कोप सज धनुष बाण लेय समस्त गुरुजनोंको प्रणामकर महाविनय संपन्न रामके संग चला, दोऊ माई जैसे देवालयतें देव निकसे तैसे मंदिरते निकसे अर माता पिता सकल परिवार अर भरत शत्रुम सहित इनके वियोगते अश्रुपात करि मानों वर्षाऋतु करते संते राखवेको चले सो राम लक्ष्मण अति पिताभक्त संबोधनेको महापंडित विदेश जायवे हीका हे निश्चय जिनके, सो माता पिता की बहुत स्तुनिकर बारम्बार नमस्कारकर बहुत थीर्य बधाय पीठ पीछे फिरे सो नगरमें हाहाकार भया । लोक वार्ता करे हैं । हे मात ! यह कहा भया यह कौनने मत उठाया । या नमरी ही का अभाग्य है अथवा सकल पृथ्वीका अभाग्य है। हे मात, हम तो अब यहां न रहेंगे, इनके लार चालेंगे। ये महा समर्थ हैं और देखो यह सीता नाथके संग चली है अर रामकी सेवा करणहारा लक्ष्मण भाई है, धन्य है जानकी विनयरूप रख पहिरे भरतारके संग जाय है।
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