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पत्र-पुराण
मेरी प्रतिपालक माता है । यह वार्ता सुन विद्याधरनिकी सर्व सभा आश्चर्यको प्राप्त भई । अर चन्द्रगति भामंडलको राज्य देय संसार शरीर अर भोगोंसे उदास होय वैराग्य अंगीकार करना विचारा अर भामंडलको कहता भया-हे पुत्र ! तेरे जन्मदाता माता पिता तेरे शोकसे महादुखी तिष्ठे हैं सो अपना दर्शन देय तिनके नेत्रोंको आनन्द उपनाय । सो स्वामी सर्वभूतहित मुनिराज राजा दशरथसे कहै हैं यह राजा चन्द्रगति संसारका स्वरूप असार जान हमारे निकट प्राय जिन दीक्षा धरता भया, जो जन्मा है सा निश्चयते ही मरेगा पर जो मूवा है सो अवश्य नया जन्म धरेगा यह संसारकी अवस्था जान च द्रगति भव भ्रमणते डरा। ये मुनिके वचन सुनकर भामंडल पूछता भया-हे प्रभो ! चन्द्रगतिका अर पुष्पवतीका मोपर अधिक स्नेह काहे भया, तब मुनि बोले, ये पूर्व भक्के तेरे माता पिता हैं सो सुन । एक दारूनामा ग्राम वहां ब्राह्मण विमुचि ताके अनुकोशा स्त्री अर अतिभूत पुत्र ताकी स्त्री सरसा, अर एक कयान नामा परदेशी ब्रामण सो अपनी माता ऊर्या सहित दारूग्राममें आया सो पापी अतिभूतकी स्त्री सरसाको अर इनके घरके सारभूत धन को ले भागा सो अतिभूत महादुखी होय ताके हृढ़वे को पृथ्वीपर भटका अर याका पिता कैक दिन पहिले दक्षिणाके अर्थ देशांतर गया हुता घर पुरुषनि विना सूना हो गया जो घरमें थोडा बहुत धन रहा था सो भी जाता रहा अर विभूतिकी माता मनुकोशा सो दारिद्रकरि मह दुखः यह सब वृत्तांत विमुचिने सुना कि घरका धन हू गया अर पुत्रकी बहू हू गई अर पुत्र दुहने को निकसा है सो न जानिये कि कोन तरफ गया । तब बिमुचि घर पाया पर अनुकोशाको अति विह्वल देख धीर्य बंधाया अर कयानकी माता ऊर्था मोह महादखिनी पुत्र अन्याय कार्य किया ताकरि अति लज्जावान सो कहके दिलासा करी जो तेरा अपराध नाहीं अर आप विमुचि पुत्रके ढूढने को गया सो एक सर्वारि नाम नगर ताके वनमें एक अवधिज्ञानी मुनि सो लोकनके मुखत उनकी प्रशंसा सुनी । जो अवधिज्ञानरूप किरणों कर जगतमें प्रकाश करें हैं । तब यह मुनिपै गया अर पुत्र बधूके जानेसे महा दुखी हुता ही सो मुनिराज की तपोऋद्धि देखकर अर संसारकी झूठी माया जान तीव्र वैराग्य पाय विमचि ब्राह्मण मुनि भया अर विमुचिकी स्त्री अनुकोशा अर कयानकी माता ऊर्या ये दोनों बामणो कमलकांता आर्यिकाके निकट प्रथिकाके व्रत धरती भई सो विमुचि मुनि श्रर वे दोनों आर्यिका तीनों जीव महानिस्पृह धर्म ध्यानके प्रसादते स्वर्गलोक गए कैसा है वह लोक सदा प्रकाशरूप है । विमुचिका पुत्र अतिभूत हिंसामार्गका प्रशंसक अर संयमी जीवोंका निंदक सो आर्त रौद्रध्यानके योगतें दुर्गति गया यह कयान भी दुर्गति गया अर वह सरसा अतिभूतकी स्त्री जो कयानकी लार निकसा हुती सो बलाहट पर्वतकी तलहटीमें मृगी भई, सो व्याघ्रके भयते मृगोंके यूथसे अकेली होय दावानलमें जलमुई, सो जन्मांतरमें चित्तोत्सवा भई, अर वह कयान भव भ्रमणकर ऊंट भया । धूम्रकेशका पुत्र पिंगल भया, अर वह अतिभूत सरसा का पति भव भ्रमण करता राक्षस सरोवरके तीर हंस भया, सो सिचानूने इसका सर्व अंग घायल किया, सो चैत्यालयके समीप पडा तहां गुरु शिष्यकों भगवानका स्तोत्र पढावता भया सोयाने
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