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________________ पभ-पुराण वे सव वृत्तांत भामंडलसे कहते भए । हे कुमार ! हम कन्याके पिताको यहां ले पाए हुते कन्याकी वासे याचन करी सो वाने कही मैं कन्या रामको देनी करी है हमारे अर वाके वार्ता बहुत भई वह न माने तब वज्रावर्त धनुषका करार भया जो धनुष राम चढावें तो कन्याको परखे नातर हम यहां ले आवेंगे अर भामंडल विवाहेगा सो थनुष लेकर यहांसे विद्याधर मिथिलापुरी गए सो राम महापुण्याधिकारी धनुष चढाया ही, तब स्वयंवर मंडपमें अनककी पुत्री प्रति गुणवती महा विवेकवती पति के हृदयकी हरणहारी ब्रत नियमकी धारनहारी नव यौवन मंडित दोषोंसे अखंडेन सर्व कला पूर्ण शरद ऋतुकी पूर्णमासीके चंद्रमा समान मुखकी कातिको थरे लक्ष्मी सारखी शुभलक्षण लावण्यताकर युक्त सीता महासती श्रीरामके कंउमें वरमाला डाल बन्लभा होनी भई । हे कुमार ! वे धनुष वर्तमान कालके नाहीं गदा अर हल आदि देवोपुनीत रत्नोंसे युक्त अनेक देव जिनकी सेवा करें कोई जिनको देख न सके सो वज्रावर्त सागरावर्त दोऊ धनुष राम लक्ष्मण दोनों भाई चढावते भए । वह त्रिलोकसुन्दरी रामने परणी, अयोध्या ले गए सो अब वह बलात्कार देवोंसे भी न हरी जाय हमारी कहा बात अर कदाचित कहोगे रामको परणाये पहले ही क्यों न हरी सो जनकका मित्र रावणका जमाई मधु है सो हम कैसे हर सकें। ताते हे कुमार ! अब संतोष धरी निर्मलता भजो होनहार होय सो होय इन्द्रादिक भी और भांति न कर सके । तब धनुष चढावनेका वृत्तांत अर रामसे सीताका विवाह हो गया सुन भामंडल अति लज्जावान होय विषाद करि पूण भया मनमें विचार है जो मेरा यह विद्याधर का जन्म निरर्थक है । जो मैं हीन पुरुषकी न्याई ताहि न परण सका । ई अर क्रोधकर मंडित होय सभाके लोगनिको कहता भया--कहा तुम्हारा विद्याधरपना, तुम भूमिगोचारिनितेहू डी हो । मैं आप जायकर भूमिगोचरिनिको जीत ताको ले आऊंगा अर जे धनुष के अधिष्ठाता उनको धनुष दे आये हैं तिनका निग्रह करूगा ऐसा कहकर शस्त्र साज विमानविर्षे चढ आकाशके मार्ग गया । अनेक ग्राम नदी नगर वन उपवन सरोवर पर्वतादि पूर्ण पृथिवी मंडल देखा तब याकी दृष्टि जो अपने पूर्व भवका स्थानक विदग्धपुर पहाडनिके वीच हुता, वहां पडी। चित्त में चिंतई कि यह नगर मैंने देखा है जाति स्मरण होय मूळ आय गई। .. तर मंत्री व्याकुल होय पिताके निकट ले आए । चन्दनादि शीतलद्रव्योंसे छाटा तब प्रबोधको प्राप्त भया। राजलोककी स्त्री याहि कहती भई-हे कुमार तुमको यह उचित नाही जो माता पिताके निकट ऐसी लज्जारहित चेष्टा करो। तुम तो विचक्षण हो, विद्याधरोंकी कन्या देवांगनाहुते अतिसुन्दर हैं वे परणों लोकहास कहा करावो हो । तब भामंडलने लज्जा भर शोक करि मुख नीचा किया अर बहता भया धिकार है मोको मैं महामोहकरि विरुद्ध कार्य पिता जो चांडालादि अत्यंत नीचकुल हैं तिनके यह कर्म न होय । मैं अशुभ कर्मके उदय करि अत्यन्त मलिन परणाम किये। मैं अर सीता एक ही माताके उदरसे उपजे हैं। अब मेरे अशुभकर्म गया वो यथार्थ जानी, सो याके ऐसे वचन सुनकर अर शोककर पीड़ित देख. याका पिता राजा चन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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