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________________ AAAAAAAA २५२ पद्य-पुराण भूतहित नामा मुनि बड़े प्राचार्य मनःपर्यय ज्ञानके धारक पृथ्वीविष विहार करने संघसहित सरयू नदीके तीर आए। कैसे हैं मुनि ? पिता समान छह कायके जीवोंके पालक दयाविौं लगाई है मन, वचन, कायकी क्रिया जिनने, प्राचार्यों की आज्ञा पाय कैयक मुनि तो गहन वनमें विराजे, कैयक पर्वतों की गुफावोंमें, कैयक वनके चैत्यालयोंमें, कैयक वृक्षोंके कोटरोंमें इत्यादि ध्यानके योग्य स्थानों में साधु तिष्ठे अर आप प्राचार्य महेन्द्रोदय नामा वनमें एक शिलापर जहां विकलत्रय जीवोंका संचार नाहीं अर स्त्री नपुंसक बालक ग्राम्यजन पशुनिका संसर्ग नाही असा जो निर्दोष स्थानक वहां नागवृक्षके नीचे निवास किया । महागंभीर महाक्षमावान जिनका दर्शन दुर्लभ कर्म खिपावनेके उद्यमी मह उदार है मन जिनका, महामुनि तिनके स्वामी वर्षा काल पूर्ण करनेको समाधि योग थर तिष्ठे, कैला है वर्षाकाल ? विदेश गमन किया तिनको भयानक है। वर्षती जो मेघमाला अर चमकती जो विजुरी पर गरजती जो कारी घटा तिनकी भयंकर जो ज्वनि ताकरि मानों सूर्यको खिझावता संता पृथ्वीपर प्रकट भया है । सूर्य ग्रीष्म ऋतुमें लोकनिको मातापकारी हुता सो अब स्थूल मेवकी धाराके अन्धकारते भय थकी भाज मेघमालामें छिपा चाहै है अर पृथ्वीतल हरे नाजकी अंकूरोंरूप कंचुकिनकर मंडित है अर महानदियोंके प्रवाह वृद्धिको प्राप्त भए हैं, ढाहा पहाडते बहै हैं इस ऋतु में जे गमन करै हैं ते अतिकम्पायमान होय हैं भर तिनके चित्तमें अनेक प्रकार की भ्रांति उपजै है, ऐसी वर्षा ऋतुम जैनी जन खड़गकी धारा समान कठिन वा निरन्तर धारे हैं । चारण मुनि अर भूमिगोचरी मुनि चातुमाक्षिकमें नाना प्रकारके नियम धरते भए, हे श्रेणिक ! ते मुनि तेरी रक्षाकरें रागादिक परणतितें तुझे निवृत्त करें। अथानन्तर प्रभात समय राजा दशरथ वादित्रोंके नादसे जाग्रत भया जैसे सूर्य उदयको प्राप्त होय अर प्रात समा कूकडे बोलने लोलारिस चकया सरोवर तथा नदियोंके तटविणे शन्द करते भए । स्त्री पुरुष सेजने उठे भगवानके जे चैत्यालय तिनमें मेरी मृदंग वीणा वादित्रोंके नाद होते भए । लोक निद्रा को तज जिन पूजनादिकमें प्रारते । दीपक मंद ज्योति भए । चंद्रमाकी प्रभा मंद भई । कमल फूले कुनद मुद्रित भए, अर जै: जिन सिद्वान्तके ज्ञातानिके वचनोंसे मिथ्या. वादी विलय जांय तैसे सूर्य की किरणोंसे ग्रह तारा नक्षत्र छिप गए । या भांति प्रभात समय अत्यन्त निर्मल प्रकट भया तब राजा देह कृत्य क्रियाकर भगवानकी पूजाकर बारम्बार नमस्कार करता भया पर भद्र जातिकी हथिनी पर चढ देवों सारिखे जे राजा तिनके समूहोंसे सेव्यमान ठौर २ मुनियोंको अर जिनमंदिरोंको नमस्कार करता महेंद्रोदय वनमें पृथ्वीपति गया, जाकी विभूति पृथ्वीको आनन्दकी उपजाधनहारी वर्षा पर्यंत व्याख्यान करिए तो भी न कह सकिए। जो मनि गुणरूप रत्नोंका सागर जिस समय याकी नगरीके समीप आवे ताही समय याको खबर होय जो मुनि आए हैं, तब ही यह दर्शनको जाय सो सर्व भूतहित मुनिको आए मुन तिनके निकट कैते समीपी लोगोंसहित गया, हथिनीसे उतर अति हर्षका भरा नमस्कारकर महाभक्ति संयुक्त सिद्धांतसंबंधी कथा सुनता भया । चारों अनुयोगोंकी चर्चा धारी अर अतीत अनागत वर्तमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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