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________________ २४८ पद्म पुराण पिता के पास आए अर सीताहू आई, अर जेते विद्याधर आए हुते सो राम लक्ष्मणका प्रताप देख चन्द्रवर्द्धनकी लार रथनूपुर गए । जाय राजा चन्द्रगतिको सर्व वृत्तांत कहा सो सुनकर चिंतावान् होय तिष्ठा । र स्वयम्बर मंडपमें रामके भाई भरत हू आए हुते सो मनमें ऐसा विचारते भए कि मेरा अर राम लक्ष्मणका कुल एक अर पिता एक परन्तु इनकासा अद्भुत पराक्रम मेरा नाहीं, यह पुण्याधिकारी हैं इनकेसे पुण्य मैंने न उपाजे यह सीता साचात् लक्ष्मी कमलके भीतरे दल समान है वर्ण जिसका, राम सारिखे पुण्याधिकारी ही की स्त्री होय, तब के कई इनकी माता सर्व कलाविषै प्रवीण भरतके चित्तका अभिप्राय जान पतिके कानविष कहती भई - हे नाथ ! भरतका मन कछु इक विलषा दीखे है, वैसा करो जो यह विरक्त न होय, " इस जनक के भाई कनकके राखी सुप्रभा उसकी पुत्री लोकसुन्दरी है, सो स्वयंवर मंडप की विधि बहुरि करावो पर वह कन्या भरत के कंठमें वरमाला डारे तो यह प्रसन्न होय, त दशरथ याकी बात प्रमाणकर कनकके कान पहुंचाई तब कनने दशरथकी आज्ञा प्रमाणकर जे राजा गए हुने सो पीछे बुलाए । यथायोग्य स्थानपर तिष्ठे सब जे भूपति तेई भए नक्षत्रोंके समू उनमें तिष्ठता जो भरतरूप चन्द्रमा ताहि कनककी पुत्री लोकसुन्दरी रूप शुक्लपक्ष की रात्रि सो महानुरागसे वरती भई । मनकी अनुरागतः रूप माला तो पहिले अवलोकन करते ही डारी हुती बहुरि लोकाचारमात्र सुमन कहिये पुष्प तिनकी वरमाला भी कण्ठ में डारी । कैसी हैं कनककी पुत्री ? कनक समान हे प्रभा जाकी, जैसे सुभद्रा भरत चक्रवर्तीको वरा था तैसे दशरथ के पुत्र भरतको बरती भई । गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहै हैं हे श्रेणिक, कर्मों की विचित्रता देख, भरत जैसे विरक्तचित्त राजकन्यापर मोहित भए भर सम राजा विलखे होय. अपने २ स्थानक गए, जाने जैसा कर्म उपार्जा होय तैसा ही फल पावै है किसी के द्रव्यको दूसरा चाहनेवाला न पावै ॥ अथानन्तर मिथिलापुरीमें सीता श्रर लोकसुन्दरीके विवाहका परम उत्साह भया । कैसी है. मिथिलापुरी ध्वजा पर तोरणों के समूह ने मण्डित है अर महा सुगन्ध करि भरी है शंख आदि वादित्रोंके समूहसे पूरित है, श्रीराम और भरतका विवाह महा उत्सव सहित भया । द्रव्यकरि भिक्षुक लोक पूर्ण भए जे राजा विवाहका उत्सव देखने को रहे हुते ते दशरथ र जनक कनक दोनों भाई से अति सन्मान पाय अपने अपने स्थानक गये। राजा दशरथके चारों पुत्र रामकी स्त्री सीता भरतकी स्त्री लोकसुन्दरी महा उत्सवसों अयोध्याके निकट आये। कैसे हैं दशरथ के पुत्र सकल पृथिवीद्धि कीर्ति जिनकी अर पमस्वरूप परमगुण सोई भया समुद्र तादिषै मग्न हैं श्वर परम रत्नननिके आभूषण तिनकर शोभित हैं शरीर जिनके माता पिताको उपजाया है महाहर्ष जिनने, नानाप्रकारके बहन तिनकर पूर्ण जो सेना सोई भवा सागर जहां अनेक प्रकार के वादित्र बाजे हैं जैसे जल निषि गाजें । ऐसी सेनासहित राजमार्ग दो महिल पधारे 1 मार्ग में जनक पर कनककी पुत्रीको सव ही देखे हैं सो देख देख अति हर्षित होय है पर कहे हैं इनकी तुल्य और कोई नाहीं । यह उचम शरीरको भरे हैं इनके देखनेको नगरके नर नारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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