________________
२१८ मन्यु, ताके, बसन्ततिलक, ताके कुवेरदत्त, ताके कुंथुभक्त सो महाकीर्तिका धारी, ताके शतरथ, ताके द्विरदरथ, ताके पिंहदमन, ताके हिरण्यकशिपु, ताके पुंजस्थल,ताके ककूस्थल, ताके रघु, महापराक्रमी । यह इक्ष्वाकुवंश श्री ऋषभदेवतें प्रवरता सो वंशकी महिमा हे श्रेणिक तोहि कहीं। ऋषभदेवके वंशमें श्रीराम पयंत अनेक बड़े २ राजा भए ते मुनिव्रत धार मोक्ष गए। कैयक अहमिंद्र भए, कैयक स्वर्गमें प्राप्त भए या वंशविष पापी विरले भए ।।
बहुरि अयोध्या नगरविष राजा रघुके अनरण्य पुत्र भया जाके प्रतापगरि उद्यानमें बस्ती होती भई, ताके पृथिवीमती राणी महागुणवन्ती महाकांतिकी धरणहारी महारूपवती महापतिव्रता ताके दो पुत्र होते भए महा शुभलक्षण एक अनन्तरथ दूसरा दशरथ, सो राजा सहस्ररश्मि माहिष्मती नगरीका पति ताकी अर राजा अनरण्यकी परम मित्रता हाती भई मानों ये दोनों सौधर्म अर ईशान इ-द्र ही हैं जब रावण ने युद्ध में सहस्ररश्मिको जीता अर ताने मुनिव्रत धरे सो सहसरश्मिके अर अनरण्यके यह वचन हुता कि जो तुम वैराग्य धारो तर मोहि जतावना पर मैं वैराग्य धारूंगा तो तुम्हें जताऊंगा सो वाने जब वैराग्य धारा तव अनरण्यको जताना दिया तब राजा अनरण्यने सहस्ररश्मिको मुनि हुआ जानकर दशरथ पुत्रको राज्य देय आप अनन्तरथ पुत्र सहित अभयसेन मुनिके समीप जिन दीक्षा धारी, महातपकरि कर्मोका नाशकर मोक्षको प्राप्त भए अर अनन्तरथ मुनि सर्व परिग्रहरहित पृथ्वीपर विहार करते भए । बाईस परीषहके सहनहारे किसी प्रकार उद्वेगको न प्राप्त भए तब इनका अनन्तवीर्य नाम पृथ्वीपर प्रसिद्ध भया अर राजा दशरथ राज्य करै सो महामुन्दर शरीर नवयौवनविणे अतिशोभायमान होता भया अनेक प्रकार पुष्पनिकरि शोभित मानों पर्वतका उत्तुङ्ग शिखर ही हैं।
अथानन्तर दभस्थल नगरका राजा कौशल प्रशंसा योग्य गुणोंका धारणहारा ताके राणी अमृतप्रभाकी पुत्री कौशल्या, नाहि अपराजिता भी कहैं हैं, काहेसे कि-यह स्त्रीके गुणोंसे शोभायमान कामकी स्त्री रति समान महा सुन्दर किसी से न जीती जाय महारूपवंती सो राजा दशरथने परणी । वहुरि एक कमलसंकुल नामा" बडा नगर तहांका राजा सुबन्धुतिलक ताके राणी मित्रा ताके पुत्री सुमित्रा सर्व गुणों से मंडित महा रूपवती जाहि नेत्ररूप कमलोंसे देखे मन हर्षित होय पृथ्वीपर प्रसिद्ध सो भी दशरथने परणी बहुरि एक और महाराजा नाम राजा ताकी पुत्री सुप्रभा रूप लावण्यकी रूनि जाहि लखे लक्ष्मी लजावान् होय सोहू राजा दशरथने परणी भर राजा दशरथ सम्यग्दर्शनको प्राप्त होते भए अर राज्यका परम उदय पाय सो सम्यकदर्शनको रत्नो समान जानते भए अर राज्यको तण समान मानते भए कि जो राज्य न जे तो यह जीव नरकमें प्राप्त होय, राज्य तजै तो स्वर्ग मुक्ति पावै अर सम्यक् दर्शनके योगते निसन्देह ऊर्ध्वगति ही है सो ऐसा जान राजाके सम्यग्दर्शनको दृढता होती भई अर जे भगवानके चैत्यालय प्रशंसा योग्य आगे भरत चक्रवादिकने कराए हुते तिनमें कैयक ठौर भंग भावको प्राप्त भए हुते सो राजा दशरथने तिनको मरम्मत कराय ऐसे किए मानों नवीन ही हैं भर इंद्र
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org