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प-पुराण उदयकर नरकमें गए, हे श्रेणिक ! या संसारमें अज्ञानी जीव चक्रकी नाई भ्रमण कर हैं, कबहु स्वगर्गादिके भोग पावै हैं तिन मग्न होय क्रीडा करै हैं, कैयक पापी. जीव नरक निगोदमें क्लेश मोगें हैं। ये प्राणी पुण्य प.पके उदयतें अनादि कालके भ्रमण करै हैं । कबहूँ कष्ट, कबहूँ उत्सव । यदि विचार करके देखिये तो दुःख मेरु समान, सुख राई समान है । कैयक द्रव्यरहित क्लेश भोगवे हैं, कैयक बाल अवस्था में मरण करें हैं, कैयक शोक करे हैं, कैयक रुदन करै हैं, कैयक विवाद कर हैं, कैयक प? हैं, कैयक पराई रक्षा कर हैं, कैयक पापी बाधा कर हैं, कैयक गरजै हैं, कैयक गान करे हैं, कैयक पराई सेवा कर हैं, कैयक भार बहै हैं, कैयक शयन करै हैं, कैयक पराई निंदा करे हैं केयक केलि करे हैं, कैयक युद्करि शत्रुओंको जीते हैं, केयक शत्रको पकड छोड देय हैं, कैयक कायर युद्धको देख भागे हैं, कैयक शूरवीर पृथ्वीका राज्य करै हैं, विलास करै हैं, बहुरि राज्य तज वैराग्य धारै हैं, कैयक पापी हिंसा करे हैं, परद्रव्यकी बांछा कर हैं, परद्रव्यको हरे हैं.. दौडे हैं, कूट कपट करे है, ते नरकमें पड़े हैं, पर जे कैयक लज्जा धारे हैं, शील पाले हैं, करुणाभाव धरै हैं, परद्रव्य तजे हैं, क्षमाभाव धरैं हैं वीतरागताको भजे हैं, संतोष धारै हैं, प्राणियोंको साता उपजावै हैं ते स्वर्ग पाय परंपराय मोक्ष पावै हैं, जे दान करें हैं, तप कर हैं, अशुभ क्रियाका त्याग करहैं, जिनेन्द्रकी अर्धा करें हैं, जैन शास्त्रों की चर्चा करे हैं, सब जीवोंसे मित्रता करे हैं, विवकि योंका विनय कर हैं, ते उत्तम पद पाये हैं। कैयक क्रोध करें हैं, काम सेवै हैं, राग द्वेष महक वशीभूत हैं, परजीवोंको ठगे हैं, ते भवसागरमें डूबे हैं, नाना विधि नाचे है, जगतमें राचे हैं, खेद खिम हैं, दीर्घ शोक कर हैं, झगडा करे हैं, संताप कर हैं, असि मसि कृषि वाणिज्यादि व्यापार कर हैं, ज्योतिष वैद्यक यंत्र मंत्रादिक करै हैं, शृंगारादि शास्त्र रचे हैं ते वृथा पच पचकर मरे हैं इत्यादि शुभाशुभ कर्मसे आत्मधर्मको भूल रहे हैं। संसारी जीव चतुर्गतिमें भ्रमण करै हैं। या अवसर्पणी कालविष आयु काय घटनी जाय है, श्रीमल्लिनाथके मुक्ति गए पीछे मुनिसुव्रतनाथके अंतराल में या क्षेत्र में अयोध्या नगरीविष विजय नामा रजा भया, महा शूरवीर प्रतापकरि संयुक्त, प्रजा पालनमें प्रवीण, जीते हैं समस्त शत्रु जाने, ताके हेमचूलनी नामा पटराणी, ताके महा गुणवान सुरेन्द्रमन्यु नामा पत्र भया, ताके कीर्तिसमा नामा रणी, ताके दोय पुत्र भए एक बजबाहु द जा पुरंदर, चंद्र सूर्य समान है कांति जिनकी नहागुणवान अर्थसंयुक्त है नाम जिनके, ते दोनों भाई पथ्वीपर सुखसों रमते भए । ये तो कथन यहां रया ॥
अथानन्तर हस्तिनागारमें एक राजा इन्द्रवाहन ताके राणी चूडामणी; ताके पुत्री मनोदया अतिसुन्दरी सो वजूबाहुकुमारने परणी कन्याका भाई उदयसुन्दर बहिनको लेनेको आया सो बज्रबाहुकुमारका स्त्रीस अति प्रेम हुता, स्त्री अति सुंदरी कुमार स्वीके लार सासरे चले । मार्गमें वसंतका समय था पर वसंतगिरि पर्वतके समीप आय निकसे, ज्यों ज्यों वह पहाड निकट आवै त्यों त्यों ताकी परम शोभा देख कुमार अति हर्षको प्राप्त भए, पुष्पोंकी जो मकरन्दता उससे मिली सुगंध पयन सो कुनारके शरीर सपरसी, ताकरि ऐसा सुख भया जैसे बहुत दिनके बिछुरे मित्रसों मिले सुख होय । कोकिलानिके मिष्ट शब्दकरि हर्षित भया है.
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