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पद्म पुराण
भगा जो देवों को तो मनुष्यकी कहा बात ? अर्धरात्रीके समय शब्दरहित होय गए, तब यह गता भया अर वारंवार वीणाको श्रतिरागत बजावता भया और भी मारबाजे बजावता भया अर मंजीरादिक बजावता भया. मृदंगादिक बजावता भया, बांसुरी आदिक फूरुके बाजे बजावता भया र सप्त स्वरोंमें गया के नाम निषाद १, ऋषभ २, गांधार ३, पडज ४, मध्यम ५, चैत्र ६, पंचल ७, इन सके तीन ग्राम शीघ्र मध्य विलंबित पर sate मृग हैं सो गंवों में जे बड़े देव हैं तिनके समान गान किया या गानविद्या में गंधर्व देव प्रसिद्ध हैं उनंचास स्थानक रागके हैं सब ही गंधर्वदेव जाने हैं भगवान श्रीजिनेन्द्रदेव के गुण सुन्दर अक्षरों में गाए कि मैं श्री अरिहंतदेवको भक्ति कर बंन्दु हूं कैसे हैं भगवान १ देव पर देन्यों कर पूजनीक हैं | देव कहिये स्वर्गवासी दैत्य कहिये ज्योतिषी वितर पर भवनवासी ये चतुरनिकाके देव हैं सो भगवान सब देवों के देव हैं, जिनको सुरनर विद्याधर अष्ट द्रव्यसे पूजे हैं बहुत कम हैं तीन भुवनमें अति प्रवीन हैं यर पवित्र हैं अतिशय जिनके ऐसे जे श्रीमुनिसुव्रतनाथ तिनक चरण युगल में भक्ति पूर्वक नमस्कार करू हूं जिनके चरणारविंदके नखोंकी कांति इंद्रके मुकुटकी रत्नोंकी ज्योतिको प्रकाश करें हैं, ऐसे गान गंधर्वदेवने गाए मो बसंतमाला अति प्रशंसा करती भई धन्य है यह गीत, काहुने अतिमनोहर गाए, मेरा हृदय अमृतकर श्राच्छादित किया अजंनी को
मला कहती भई यह कोई दयावान देव हैं जाने अष्टापदका रूपकर सिंहको भगाया अर हमारी रक्षा करी पर यह मनोहर राग याहीने अपने आनन्द के अर्थ गाए हैं। हे देवी हे शोभने हे शीलवंती ! तेरी दया सत्र ही करें । जे भव्य जीव हैं तिनके महाभयंकर वन में देव मित्र दाँव । या उपसर्गके विनाश से निश्वय तेरा पनि मिलाप होयगा और तेरे पुत्र अद्भुत पराकसी डोगा सुनिके वचन अन्यथा न हों, सो सुनिके ध्यानकर जो पवित्र गुफा तःवि श्रीमुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा पथराय दोनों सुगंध द्रव्यनितें पूजा करती भई। दोनोंके चित्तमें यह विचार कि प्रसूत सुखसे होय । बसंतमाला नानाभांति अंजनी के चित्तको प्रसन्न करे पर कहती भई कि हे देवी ! aat यह वन र गरि तिहारे पधारनेसे परम हर्षको प्राप्त भया सो नीझरने के प्रवाहकर यह पर्वत मानों हमें ही है । यह वन वृत्र फलोंके भारसे नम्राभूत लहलहाट करें हैं कोमल हैं पल्लव जिनके बिखर रहे हैं फूल जिनके सी मानी हर्षको प्राप्त भए हैं और जे मयूर मैना कोकिलादिक मिष्टशब्द कर रहे हैं सो मानो वन पहाडसे वचनालाप करें है पर्वत नानाप्रकारको जे धातु तिनकी हैं खान जहां पर सघन वृत्रोंके जे समूह सोई इस रूप राज के सुन्दर वस्त्र हैं और यहां नानाप्रकारके रत्न हैं सोई इस गिरिके आभूषण भए बर इन पर्वत भलो भली गुफा हैं पर यहां अनेक जातिके सुगन्ध पुष्प हैं अर या पर्वत ऊ बड़े बड़े सरोवर हैं तिनमें सुगन्ध कमल फूल रहे हैं तेरा मुख महासुन्दर अनुपम सो चन्द्रमा और कमलकी उपमाको जीते हैं 1 हे कन्यारूपणी ! चिंताके वश मत हो, वीर्य घर या में सव कल्याण होयगा, देव सेवा करेंगे। हे पुण्याधिकारिणी तेरा शरीर निःपाप है, हर्षने पक्षी शब्द करें हैं मानों तेरी प्रशंसा करें मैं यह वृक्ष शीतल मंद सुगन्धके प्रेरे पत्रांक लहलहाटसे मानों तेरे विराजने से महाहर्षको प्राप्त
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