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________________ दूसरा पव लक्ष्मण के पुत्रनिका वैराग्य । अर विद्यु तपातत भामण्डलका मरण । हनुमानका वैराग्य । लक्ष्मण की मृत्यु । रामके पुत्रनिका तप । श्रीराम लक्ष्मणके वियोगत अत्यंत शोक अर देवतानिके प्रतिबोधत मुनिव्रतका अंगीकार केवलज्ञानकी प्राप्ति । निर्वाण गमन । यह सर्व रामचन्द्रका चरित्र सज्जन पुरुष मनकू समाधान करिकै सुनहु । यह चरित्र सिद्ध पदरूप मंदिरकी प्राप्तिका सिवाण है अर सर्वप्रकार सुखनिका दायक है। श्रीरामचन्द्रकों आदि दे जे महामुनि तिनका जे मनुष्य चिंतन करें हैं अर अतिशयपणेकरि भावनिके समूहकरि नम्रीभूत होइ प्रमोदकू धरै हैं तिनका अनेक जन्मनिका संचित जो पाप सो नाश होइ है । सम्पूर्ण पुराण जे श्रवण करें तिनका पाप दूर होय ही होय। तामें संदेह कहा ? कैसा है पुराण ? चंद्रमा समान उज्ज्वल है। तातें जो विवेकी चतुर पुरुष हैं ते या चारित्रका सेवन करहु । कैसा है चरित्र ? बड़े पुरुषनिकरि सेइवा योग्य है । जैसे सूर्यकरि प्रकास्या जो मार्ग ताविषै भले नेत्रनिका धारक पुरुष काहेको डिगै? इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित पद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थकी भाषा वचनिका व पीठ बंध विधाननामा . प्रथम पर्व पूर्ण भया ॥१॥ अथ लोकस्थिति महा अधिकार । मगध देशके राजगृह नगरमें श्रीमहावीरस्वामीके समोशरणका आना और राजा श्रेणिकका श्रीरामचन्द्र की कथा का पूछना। जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें मगध देश अति सुन्दर है, जहां पुण्याधिकारी बसे हैं इन्द्रके लोक समान सदा भोगोपभोग करे हैं जहां योग्य व्यवहारसे लोक पूर्ण मांदारूप प्रवृत्त हैं और जहां सरोवरमें कमल फूल रहे हैं और भूमिमें अमृत समान मीठे सांठनके बाडे शोभायमान हैं और जहां नाना प्रकारके अन्नोंके समूहके पर्वत समान ढेर होय रहे हैं अरहटकी घडीसे सींचे जीराके धणाके खेत हरित होय रहे हैं, जहां भूमि अत्यन्त श्रेष्ठ है सव वस्तु निपजे हैं। चांवलों के खेत शोभायमान और मूंग मोठ ठौर ठौर फूल रहे है गेंहू आदि अन्नको किसी भांति विघ्न नहीं और जहां भैसकी पीठपर चढे ग्वाला गाये हैं गऊओंके समूह अनेक वर्णके हैं जिनके गलेमें घण्टा बाजे हैं और दुग्ध झरती अत्यन्त शोभे हैं, जहां दूधमगी धरती हो रही है, अत्यन्त स्वादु रसके भरे तृण तिनको चरकर गाय भैंस पुष्ट होय रही हैं, और श्याम सुन्दर हिरण हजारों विचरे हैं मानो इंद्रके हजारों नेत्र ही हैं, जहां जीवनको कोई बाधा नहीं जिन थमिगेका राज्य है और बनके प्रदेश केतकीके फूलोंसे धवल हो रहे हैं, गंगाके जलके समान उज्वल बहुत शोभायमान हैं और जहां केसरकी क्यारी अति मनोहर हैं और जहां ठौर ठौर नारियलके वृक्ष हैं और अनक प्रकारके शाक पत्रसे खेत हरित हो रहे हैं और वनपाल नर मैवादिकका आस्वादन करे हैं, और जहां दाडमके बहुत वृक्ष हैं जहां सूवादि अनेक पक्षी बहुत प्रकारके फल भक्षण करे हैं, जहां बन्दर अनेक प्रकार किलोल करे हैं, विजौराके वृक्ष फल रहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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