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________________ पद्मपुराण वरदान देना राम लक्ष्मण भरत शत्रु नका जन्म सीताकी उत्पत्ति मामण्डलका हरण अर साकी माताकू शोकका होना । अर नारदने सीताका चित्रपट भामण्डलकूदिखाया सो देखकर मोहित होना । बहुरि जनकके स्मयं र मंडपका वृत्तांत अर धनुष रतनका स्वयंवर भंडपमें धरना श्रीरामचन्द्रका अावना धनुषका चढापना अर सीता विवाहना अर सर्वभूतशरण्यमुनिके निकट दशरथका दीक्षा लेना पर भामण्डलको पूर्व जन्म का ज्ञान होना अर सीताका दर्शन । बहुरि केकयीके वरतें भरतका राज्य पर राम लक्ष्मण सीताका दक्षिण दिशाकू गमन करना वज्रकिरणका चरित्र लक्षाण कू कल्याण मालाका लाभ अर रुद्रभूत को वश करना अर बालखिल्यका हुडावना अर अरुणग्रामविष श्रीराम आये तहां वनमें देवतानिने नगर बसाये तहां चौमासे रहना । लक्ष्मणके वनमालाका संगम अतिवीर्यका वैराग्य बहुरि लक्ष्मणके पद्माकी प्राप्ति अर कुलभूषण देशभाण मु नेका चरित्र । अर श्रीरामने वंशस्थल पर्व विष भगवान के मंदिर कराए तिनका वर्णन अर जटायु पर्वकू नेमकी प्राप्ति पात्रदानके फल की महिमा संवूकका मरण सूपनखाका विलाप खरदूपण लक्ष्मण का युद्ध सीताका हरण सीता रामके वियोगका अत्यन्त शोक अर राम साताके वियोगका अन्यन्त शोक बहुरि विराधि। विद्याधरका आगमन अर खरदूषणका मरण अर रतनजटीकै रावणकरि विद्याका छेद पर सुप्रीयका रामके निकट श्रावना बहुरि सुग्रीव के कारण श्रीरामने साहसगतिका नारा र सीताका वृत्तांत रतनजटीने श्रीराम कहा । श्रीरामका लङ्का जारि गमन । राम रावण के युद्ध । राम लक्ष्मण सिंहवाहिनी गरुडाहिनी विद्याकी प्राप्ति । लक्ष्मणके रावणको शक्तिका लगना अर विशल्याके प्रसाद तँ शक्ति दूर होना, रावण का शांतिनाथ मंदिरविर्षे बहुरूपणी विद्याका साधना अर रामके कटकके विद्याधर कुमारनिका लंकाविर्ष प्रोश अर रावणके चित्तके डिगावनेका उपाय पूर्णभद्र मणिभद्रके प्रभावों विद्याधर कुमारनका पाछा कटको आवना । रावणकू विद्याकी सिद्धि बहुरि राम रावण के युद्ध रावणके चक्र लक्ष्मणके हाथ आवना । अर रावणका परलोक गमन रावण की स्त्रीनिका विलाप । बहुरि केवजीका लंकाके वनविष आगमन । इन्द्रजीत आदि का दीक्षा ग्रहण। अर श्रीरामका सीतासू मिलाप दिन भोजन, केइक दिन लंकाविषे निकास बहुरि नारदका रामके निकट अावना । रामका अयोध्यागमन । भरतके अर त्रिलोकमंडन हाथी के पूर्व भरका वर्णन । भरतका वैराग्य राम लक्ष्मगका राजन अर रणविष मधुका अर लवणका मरण । मथुगविय शत्रु नका राज्य । मथुरावि पर सजदे शरिष धरणांद्रके कोपते रोगनिकी उत्पत्ति । बहुरि सासनिके प्रभावी रोमानेको निवृत्त । अर लोकापवादत सीताका वनविष सजन अर वन मंत्र राजाका याविषं यागान माताळू बहुत आदरतें ले जाना । तहां लवणांकुश का जन्म । अर लव गांकुरा बड़े हाइ अनेक राजानिकू जी । वज्रजवक राज्यका विस्तार करना। बहुरि अयोध्या जाय श्रीराम अर सर्व भूपण मुनि केवलज्ञानकी प्राप्ति देवनिका श्रागमन । सीताके सील तें अगिकुर का सीतल होना । अर विभीषणके पूर्व भवका वाम। कृतांतवक ता लेना । स्वयंवर भएअविष रामके पुत्रनि लक्ष्मणके पुत्रनिका विरोध । बहुरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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