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भ्यारहवां पर्चा हिंसाके अनुमोदनसे राजा वस नरकमें क्यों पडे ? जो कोई चूनका पशु बनाय कर पात करें है मो भी नरकका अधिकारी होय है तो माक्षात् पशुवातकी का वात ? अब भी यज्ञके करणहारे ऐमा शब्द कहै हैं हो वम् ! उठ स्वर्गविषै जावो । यह कहकर अग्निमें आहुति डार हैं। इससे सिद्ध हुआ कि वसु नरकमें गया अर स्वर्ग न गया तात हे संवर्त ! यज्ञ कल्याण का कारण नहीं अर जो तू यज्ञ ही करै तो जैसे हम कहें, सो कर । यह चिदानन्द आत्मा सो तो जजमान नाम कहिए यज्ञका करणहार अर यह शरीर है मो विन कुण्ड कहिए होमकुण्ड अर संतोष है सो पुरोडास कहिए यज्ञकी सामग्री पर जो सर्व परिग्रह सो हवि कहिए होमने योग्य वस्तु पर माधुर्य कहिए केश वेई दर्भ कहिए डाभ तिनका उपारना लोंच करना अर जो सर्व जीवोंकी दया सोई दक्षिणा अर जिसका फल सिद्धपद ऐसा जो शुक्लध्यान सोई प्राणायाम अर जो सत्यमहाव्रत सोई यूप कहिए यज्ञविष काष्ठका स्थंभ जिसमे पशुको बांधे हैं अर यह चंचल मन सोई पशु अर तपरूप अग्नि अर पांच इंद्रिय वेई समाधि कहिए ईधन । यह यज्ञ धर्मयज्ञ कहिए है अब तुम कहोहो कि यज्ञकर देवोंकी तृप्ति कीजिये है सो देवनकै तो मनसा आहार है तिनका शरीर सुन्धि य है अनादिक हीका आहार नहीं तो मांसादिककी कहा बात ? कैसा है मांस महा दुर्गध जो देखा न जाय, पिताका वीर्य माताका लोहू उसकर उपजा कृमीकी है उत्पत्ति जिसमें, महा अभक्ष सो मांस देव कैसे भखें अर तीन अग्नि या शरीरविणे हैं एक ज्ञानाग्नि दूसरी दर्शनाग्नि तीसरी उदराग्नि सो इन्हीं को आचार्य दक्षिणाग्नि गार्हएन्य आहवनीय कहे हैं डर स्वर्गलोकके निवासी देव हाड मांसका भक्षण करें तो देव काहेके ? जैसे स्थान माल काक तेस वे भी भए । ये वचन नारदने कहे।
__ कैसे है नारद ? देवऋषि हैं अनेकांतरूप जिनमार्ग के प्रकाशिवेको सूर्यसमान महा तेजस्वी देदीप्यमान है शरीर जिनका, शास्त्रार्थ ज्ञानके निधान तिनको मन्दबुद्धि संवर्त कहा जीते। सो पराभवको प्राप्त भया तव निर्दई क्रोधके भारकर कम्पायमान आशीविष सर्पसमान लाल हैं नेत्र जिसके महा कलकलाट कर अनेक विप्र भेल होय लड़नेको काछर छ हस्तपादादिकर नारद के मारने को उद्यमी भए । जैसे दिनमें काक घूघू पर आवें सो नारद भी कयकोंको मुक्कासे, कैयकोंको कोहनीसे मारते हुये भ्रमण करते हुए अपने शरीररूप शस्त्रकर अनेकोंको इता बहुत युद्ध मया । निदान यह बहुत अर नारद अकेले सो सर्व गात्र में अत्यन्त शाकुलताकों प्राप्त भये। पक्षीकी न्याई वधकोंने घेरा, आकाशमें उड़नेको असमर्थ भए, प्राण संदेहको प्राप्त भए तासमय रावस्यका दूत राजा मस्तपै आया हुतासो नारदको घेरा देख पीछे जाय रावणसे कही-हे महाराज! जिसके निकट मुझे भेजा हुता सो महा दुर्जन है उसके देखते द्विजोंने अकेले नारदको घेरा है अर मारे हैं जैसे कीड़ीदल सर्पको धेरै सो मैं यह बात देख न सका सो आपको कहिनेको आया हूं। तब रावण यह वृत्तांत सुन क्रोधको प्राप्त भया, पवनसे भी शीघ्रगामी जे वाहन उनपर चढ़ चलने को उधमी भया अर नंगी तलवारोंके थारक जे सामन्त वे अगाऊ दौड़ाए सो एक पलकमें यज्ञशालामें जा पहुंचे सो तत्काल नारदको शत्रुवोंके घेरेसे छुड़ाया अर निरदई मनुष्य जो परामों
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