SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्यारहवा पर्व एक शास्त्रका पढ़ाया । सो इनमें पढाया विशेष है एक समल है दूसरा निर्मल है। मेरे धनी के तुम शिष्य हो, तुम पुत्रसे अधिक हो, तुम्हारी लक्ष्मी देखकर मैं धीय धरूं हूँ। तुम कही थी माता दक्षिणा लेवो, मैं कही समय पाय लूंगी। वह वचन याद करो। जे राजा पृथ्वीके पालने में उद्यमी हैं ते सत्य ही कहै हैं अर जे ऋषि जीव दयाके पालने में तिष्ठे हैं ते मी सत्य ही कहै हैं तू सत्यकर प्रसिद्ध है मोको दक्षिणा देवो इस भांति स्वस्तिम्तीने कहा तब राजा विनयकर नम्रीभूत होय कहते भये-हे माता, तुम्हारी आज्ञासे जो न करने योग्य काम है सो मी मैं करूं जो तुम्हारे चित्तमें होय सो कहो । तव पापिनी ब्राह्मणीने नारद अर पर्वतके विवादका सर्व वृत्तांत कहा पर कहा मेरा पुत्र सर्वथा भूठा है परन्तु याके झूठको तुम सत्य करो, मेरे कारण उसका मान मंग न होय तब राजाने यह अयोग्य जानते हुए भी ताकी बात दुर्गतिका कारण प्रमाण करी सब वह राजाको आशीर्वाद देय घर आई, बहुत हर्षित भई । दुजे दिन प्रभात ही नारद पर्वत राजाके समीप आए, अनेक लोक कोतूहल देखनेको आए, सामन्त मन्त्री देशके लोग बहुत अाय भेले भए। तब सभाके मध्य नारद पर्वत दोनोंमें बहुत विवाद भया, नारद तो कहै अज शब्दका अर्थ अंकुरशक्तिरहित शालिय है अर पर्वत कहै पशु है तब राजा वसुको पूछा तुम सत्यवादियों में प्रसिद्ध हो जो क्षीर कदम्ब अध्यापक कहते हुते सो कहो । तब राजा कुगतिको जानेबाला कहता भया जो पर्वत कहै है, सोई क्षीरकदम्ब कहते थे। ऐसा कहते ही सिंहासनके स्फटिकके पाए टूट गये, सिंहासन भूमिमें गिर पड़ा। तब नारदने कहा हे वसु! असत्यके प्रभावसे तेरा सिंहासन डिगा अब भी तुझे सांच कहना योग्य है। तब मोहके मदकर उन्मत्त भया यह ही कहता भया जो पर्वत कहै सो सत्य है तब महा पापके मारकर हिंसामार्गके प्रवरतनसे तत्काल सिंहासन समेत धरतीमें गढ़गया । राजा मर कर सातवें नरक गया । कैसा है नरक ? अत्यंत भयानक है वेदना जहां, तब राजा ययुको मुवा देख सभाके लोग वसुअर पर्वतको धिक्कार २ कहते भये अर महा कलकलाट शब्द भया, दया धर्मके उपदेशसे नारदकी बहुत प्रशंसा भई अर सर्व कहते भये “यतो धर्मस्ततो जयः" पापी पर्वत हिंसाके उपदेशसे थिक्कार दण्डको प्राप्त भया, पापी पर्वत देशान्तरों में भ्रमण करता संता हिंसामई शास्त्रकी प्रवृत्ति करता भया, आप पहै, औरोंको पढावै जैसे पतंग दीपकमें पड़े तैसे कई एक बहिरमुख जीव कुमार्गमें पड़े । अभक्ष्यका भक्षण अर न करने योग्य काम करना ऐसा जोकनको उपदेश दिया अर कहता भया कि यज्ञहीके अर्थ ये पशु बनाये हैं, यज्ञ स्वर्गका कारण है तातें जो यज्ञमें हिंसा सो हिंसा नहीं अर सौत्रामणि नाम यज्ञके विधान कर सुरापान (शराब पीने) का भी दूषण नहीं अर गोयज्ञ नाम यज्ञमें अगम्यागम्य (परस्त्री सेवन) हू करे हैं ऐसा तिने लोकोंको हिंसादि मार्गका उपदेश दीया । आसुरी मायाकर जीव स्वर्ग जाते दिखाये कैएक कूर जीव कुकर्ममें प्रवर्तन कर कुगतिके अधिकारी भये । हे श्रेणिक ! यह हिंसायज्ञकी उत्पत्तिका कारण कहा । अब रावणका वृत्तति सुनो। रावण राजपुर गए जहां राजा मरुत हिंसा कर्ममें प्रवीण यज्ञशालाविर्षे तिढ़ था संवर्व १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy