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पवा-पुराण
आवती देखकर सहस्ररश्मिके सामन्त जीतव्यकी आशा छोड़कर धनव्यूह रचकर धनीकी आज्ञा बिना ही लड़नेको उद्यमी भए । जब रावणके योद्धा युद्ध करने लगे तब आकाशमें देवनकी वाणी भई कि अहो "यह बड़ी अनीति है ये भूमिगोचरी अल्पवली विद्यावलकर रहित माया युद्ध. को कहां जाने इनसे विद्याधर मायायुद्ध करें यह कहा योग्य है" पर विद्याधर घने अर यह थोड़े ऐसे आकाशविर्षे देवनके शब्द सुनकर जे विद्याधर सत्पुरुष थे वह लज्जावान होय भूमिमें उतरे, दोनों सेनामें परस्पर युद्ध भया । रथोंके, हाथियोंके, घोड़ोंके, असवार तथा पियादे तलवार, वाण, गदा, सेल इत्यादि आयुधोंकर परस्पर युद्ध करने लगे सो बहुत युद्ध भया । परस्पर अनेक मारे गए न्याय युद्ध भया शस्त्रोंके प्रहारकर अग्नि उठी सहस्ररश्मिकी सेना रावणकी सेनाकर कछु इक हटी तब सहस्ररश्मि रथपर चढ़कर युद्धको उद्यमी भए। माथे मुकुट धरे वखतर पहरे धनुषको धारै अति तेजको धरे विद्याधरोंके वलको देखार तुच्छमात्र भी भय न किया तब स्वामी को तेजवन्त देख सेनाके लोग जे हटे थे वे आगे आयकर युद्ध करने लगे, दैदीप्यमान हैं शस्त्र जिनके अर जे भूल गये हैं घावोंकी वेदना ये रणधीर भूमिगोचरी राक्षसोंकी सेनामें ऐसे पड़े जैसे माते हाथी समुद्रमें प्रवेश करें अर सहस्ररश्मि अति क्रोधको करते हुए वाणोंके समूहसे जैसे पवन मेघको हटावै तैसे शत्रुओंको हटावते भए, तब द्वारपाल रावणसे कही-हे देव ! देखो इसने तम्हारी सेना हटाई है यह धनुषका धारी स्थपर चढा जगतको तावत देखें है इसके बाणोंकर तुम्हारी सेना एक योजन पीछे हटी है तब रावण सहस्ररश्मिको देख आप त्रैलोक्यमण्डन हाथीपर सवार भए । रावणको देखकर त्रु भी डरे वह बाणोंकी वर्षा करते भर सहस्ररश्मिको रथसे रहित किया तब सहस्ररश्मि हाथीपर चढ़कर रावणके सम्मुख आए अर बाण छोड़े सो रावणाके वक्तरको भेद अंगविष चुभे तब रावणने बाण देहसे काढ़ डारे। सहस्ररश्मिने हंसकर रावणसे कहा-अहो रावणा ! तू बड़ा धनुराधारी महावै है ऐनी विद्या कहांसे सीखी, तुझे कौन गुरु मिला, पहले धनुष विद्या सीख फिर हमसे युद्ध करितो ऐसे कठोर शब्दसे रावण क्रोधको प्राप्त भए । सहस्ररश्मिके केशनिमें सेलकी दीनी तब सहस्ररश्मिकं रुधिरकी धारा चली जिससे नेत्र घूमने लगे पहिले अचेत हो गया पीछे सचेत होय आयुथ पकड़ने लगा तब रावण उछलकर सहस्ररश्मिपर आय पड़े अर जीरता पड़ लिया बांधकर अपने स्थान ले आए तब सब विद्याधर आश्चर्यको प्राप्त भए कि सहस्ररश्मि जैसे योधाको रावण पकड़े। कैसे हैं रावण ? धनपति यक्षके जीतनेहारे यमके मानमर्दन करनेहारे, कैलाशके कंपावनहारे, सहस्ररश्मिका यह पंचांव देख सहस्ररश्मि नो सूर्य सो भी मानों भयकर अस्ताचलको प्राप्त भया, अन्धकार फैल गया। भावार्थ-रात्रिका समय भया। भला बुरा दृष्टि में न आवै तब चन्द्रमाका विम्ब उदय भया सो अंधकारके हरणको प्रवीण मानों रावणका निर्मल यश ही प्रगटा है । युद्धविर्षे जे योद्धा पायल भए थे तिनका वैयोंसे यत्न कराया अर जो मूबे थे तिनको अपने अपने बंधुवर्ग रणपेतसे ले आये तिनकी क्रिया करी। रात्रि व्यतीन भई, प्रभातके वादित्र वाजने लगे फिर पर्य रावणकी वार्ता जाननेके अर्थ.राग कहिए ललाई को धारता हुआ कम्पायमान उदय भया ।
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