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________________ "दमबां पर्व निर्लज सताराकी प्राशा छोड़े नहीं । धिक्कार है काम चेष्टाको, यह कामाग्निकर दग्ध चित्तविर्षे ऐसा चिंतवै कि वह मुखदायिनी कैसे पाऊ? कब उसका मुख चंद्रमासे अधिक निरखूब उस सहित नंदन वनविष क्रीड़ा करू ऐसा मिथ्या चितवन करता संता रूपपरवर्तिनी शेमुषी नामा विद्याके आराधनेको हिमवंत नामा पर्वतपर जायकर अत्यंत विषम गुफाविष तिष्ठकर विद्याके श्राराधनेको प्रारम्भ करने समा। जैसे दुखी जीव प्यारे मित्रको चितारे से विद्याको चितारता भया। ___ अथानन्तर रावण दिग्विजय करनेको निकसा वन पर्वतादिकर शोभित पृथ्वी देखता अर समस्त विद्याधरोंके अधिपति अंतर द्वीपोंके वासियोंको अपने वश करता भया। अर तिनको आज्ञाकारी कर तिनहीके देशोंमें थापता भया । कैसा है रायण ? अखण्ड है आज्ञा जाकी, भर विद्यावरोंमें सिंह समान बड़े २ राजा महा पराक्रमी राषणने वश किये तिनको पुत्र समान जान बहुत प्रीति करता भया । महन्त पुरुषों का यही धर्म है कि नम्रतामात्र ही प्रसन्न होवें । राक्षसों के वंशमें अथवा कपिवंशमें जे प्रचण्ड राजा हुते वे सर्व वश किये बड़ी सेनाकर संयुक्त आकाश मार्गसे गमन करता जो दशमुख पवन समान है वेग जिसका, उसका तेज, विद्याधर सहिवेको असमर्थ भये । संध्याकार मुवेल हेमा पूर्ण सुबोधन हंस द्वीप वारिहल्लादि इत्यादि द्वीपोंके राजा विद्याथर नमस्कार कर भेट ले आय मिले सो रावणने मधुर बचन कह बहुत संतोष पर बहुत सम्पदाके स्वामी क्रिये । जे विद्याधर बड़े २ गढोंके निवासी हुते वे रावणके चरणारविंदको नम्राभूत होय आय मिले जो सार वस्तु थी सो भट करी। हे श्रेणिक ! समस्त बलोंविष पर्वो. पार्जित पुण्यका बल प्रबल है उसके उदयकर कौन वश न होय, सब ही वश होय हैं। अथानन्तर रथन पुरका राजा जी इन्द्र उसके जीतिवेकों रावण गमनको प्रवरता सो जहाँ पाताल लंकाविष खरदूषण वहणेऊ है, वहां जाय डेरा किया। पाताल लंकाके समीप डेरा भया रात्रीका समय था खरदूषण शयन करै था सो चन्द्रनखा रावणकी बहिनने जगाया, पाताललंकासे निकसकर रावणके निकट आया, रत्नोंके अर्घ देय महा भक्तिसे परम उत्साहकर रावण की पूजा करी । रावणने भी बहनेऊपनाके स्नेहकर खरदूषणका बहुत सत्कार किया। जगतविष बहिण बहणेऊ समान पर कोई स्नेहका पात्र नहीं । खरदूषणने चौदह हजार विद्याधर मनवांछित नाना रूपके धारनहारे रावणको दिखाए । रावण खरदूषणकी सेना देख बहुत प्रसन्न भए। आप समान सेनापति किया, कैसा है खरदूषण ? महा शुरवीर है उसने अपने गुणोंसे सर्व सामन्तोंका चित्त वश किया है । हिडम्ब, हैहिडिम्ब, विकट, त्रिजट, हयमाकोट, सुजट, टंक. किहकंधाधिपति, सुग्रीव, तथा त्रिपुर, मलय, हेमपाल, कोल, बसुंदर इत्यादिक अनेक राजा नाना प्रकारके वाहनों पर चढे नाना प्रकार शस्त्रनके अभ्यासी तिनकर युक्त पाताल लंकासे खरदूषण रावणके कटकविणे आया जैसे पात ल लोकसे असुर कुमारोंके समूहकर युक्त चमरेन्द्र आवे इस भांति अनेक विद्याधर राजाओंके समूहकर रावणका कटक पूर्ण होता भया जैसे बिजली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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