________________
पद्म-पुराण करता भया क्योंकि किसीसे कुछ लेना अत्यन्त लघुला है तो इस बातसे रावण प्रसन्न नहीं भया। रावण अति उदारचित्त हे । तब धरणद्र. रावणने हाथजोड़ नमस्कार मिला धरणद्र आप अपने स्थान : गए। कैसे हैं धरणेंद्र ? प्रगटा है हर्प जिनके, रावण एक मास कैलाशपर रहकर भगवान के चै..लवों की महाभक्तिसे पूजाकर अर बालो मुनिकी स्तुति कर अपने स्थानक गए।
पाली मुनिने जो कड़क मनके क्षोभसे पाप कर्म उर्जा हुतां सो गुरुषोंके निकट जाय प्रायश्चित्त लिया शल्य दूरकर परम सुखी भए । जैसे विष्णुकुमार मुनिने मुनियोंकी रक्षानिमित्त बालीका पराभव किया हु र गुरुसे प्रायश्चित्त लेय परप्रमुखी भए थे तैसे बाली मुनिने चैत्यालयोंकी र अनेक जावकी रक्षा निमित्त रावणका पराभव किया, कैलाश थाभा फिर गुरुप प्रायश्चित्त लेय शल्य नेट परन सुग्बी भए । चारित्रो गुप्तिसे धर्मसे अनुप्रेक्षासे समितिसे परीषदोंके सहनेसे महावर पाप कौती नर्जराकरि बासी मुनि केवलज्ञानको प्राप्त भए अर अष्टकर्म से रहित होय तीन लोक खिर ऋगिनासो स्थानमें अधिनाशी नुपम एखको प्राप्त भए र रावण ने मनमें विचारा कि जो इन्द्रिोंको जीते तिनको में जीतव समर्थ नहीं तातें राजाओंको साधुनों की सेवा करना ही योग्य है ऐगा जान साधुनोंकी संवा तत्पर होता भया सम्पकदर्शनसे मण्डित विशरमें उ है भक्ति जितको कामना अा यथेट सुखस तिष्ठता भया ।
___ यह बालीमा चरेच पाविज्ञारी जीव, भावपि तत्पर है बुद्धि जाकी भली भांति सुने सो काही अपमान प्राप्त न होय अर सू समान प्रता प्राप्त हाय । इति श्रोरविरेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण भाष: काविष बालीमुनिका निरूपण करनेवाला
नवनां पर्व पूर्ण भया ॥६॥
अथानन्तर गौतम स्वामी राजा श्रेणिकते कह - गोणिक ! यह वालीका वृत्तांत तो कहा अब मुवि र सुतारा राणीला वृत्त। सुन : ज्योतिपुर नामा नगर तहां राजा अग्निदि ख गरी उनकी पुत्र सु ारा जो संपूर्ण स्त्री गुणोंसे पूर्ण सर्व पृथ्थीमें रूप गुण की शामासे प्रसिद्ध मानों कमलोंका निवास तज साक्षात् इ.चनी ही आई है अर राजा चक्रांक उसकी राणी अनुनाते तिनका पुत्र इस गति महादुष्ट एकिन अपनी इच्छासे भ्रमण करै था सो ताने सुतारा देखी । देवकर काम शल्यस अत्यंा दुःखी होकर निरगर सुताराको मनमें धरता भया दशा जिसकी उन्मत्त है ऐसा दूत भे। सुताराको याचता भया अर सुग्रोव भी बारम्बार याचता भया । कैसी है वह सुतारा ? महामनोहर है । नब राजा अग्निशिख सुताराका पिता दुविधामें पड गया कि कन्या फिसको देना तर महाशानी मुनिको पूछी मुन्द्रने कहा कि साहसगतिकी अल्प आयु अर सुग्रीवकी दीघ आयु है ता अमृत सनोन मुनि. वचन सुने र राजा ग्निशिख सुग्रीवको दीर्घ आयुवाला जानकर अपनी पुत्री पागिग्रहण कराया सुग्रीव का विशेष हे न सकी प्राप्ति भई तदनन्तर सुग्रीव अर सुधार के यंग अर अगरीय जनर पर नह नापी गति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org