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________________ प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ 55 161. जैन, राका (श्रीमती) जीवन्धरचम्पू का समीक्षात्मक अध्ययन आगरा, 1985, प्रकाशित ('जीवन्धर सौरभ' नाम से प्रकाशित) नि०- श्री रघुबीर शास्त्री प्रका०- जैन मिलन, गोमतीनगर, लखनऊ (उ०प्र०) प्रथम : 2002/100.00/203 अ०- (1) विषय प्रवेश, (2) महाकवि हरिचन्द्र- एक परिचय, (3) कथावस्तु, (4) चरित्र-चित्रण सम्बन्धी वैशिष्ट्य, (5) रस योजना, (6) काव्य शिल्प, (7) सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन (8) धार्मिक स्थिति, (७) महाकवि हरिचन्द का पाण्डित्य, (10) भौगोलिक स्थिति एवं उपसंहार। 162. जैन, राका श्री रामचन्द्र मुमुक्षु विरचित पुण्याश्रवकथाकोष का जैन साहित्य में मूल्यांकन कानपुर, 1986, अप्रकाशित नि०- डा० विजय लक्ष्मी त्रिवेदी प्रधानाचार्य-बालिका शिक्षा सदन जूनियर हाईस्कूल, आनन्द चौक, देहरादून (उ०प्र०) 259/ 18 सहगल निवास, मोती बाजार, देहरादून-248001 163. जैन, राकेश कुमार वीरोदयमहाकाव्यस्य दार्शनिकमनुशीलनम् (संस्कृत) राजस्थान, 2003, अप्रकाशित नि०- डा० शीतल चंद जैन, जयपुर 164. जैन, राजुल (श्रीमती) वीरोदय महाकाव्य : एक अध्ययन राजस्थान, 2003, अप्रकाशित नि०- डा० शीतल चंद जैन, जयपुर (लघु प्रबन्ध) 164A.जैन, राजुल (कु०) आचार्य ज्ञानसागर के साहित्य की मौलिक विशेषताएं सागर, 2000, अप्रकाशित 164B.जैन राजुल (कु०) आचार्य ज्ञानसागर के साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन सागर, 2003, प्रकाशित (सांगानेर, 2003) नि०- डा० के० एल० जैन, टीकमगढ़ (म०प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002731
Book TitlePrakrit evam Jainvidya Shodh Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherKailashchandra Jain Smruti Nyas
Publication Year2004
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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