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प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ
Pub..--- Writer First : 1987/250.00/23+532 Chap.- (1) The poetic Universe, (2) The Poetic Meaning, (3) Asthetic Experience, (4) The Conception and Treatment of Poetic Blemishes, (5) The Poetic Excellences or the Gunas, (6) The Poetic Embelishment, (7) Dramatis Persons, (8) Types of Literary Compositions or Forms of Literature,(9) Hemachandra's Theory of Literature, (10) Conclusion--- A Critical review of Hemachandra's achievement, (11) A Synoptic View of the Life and Works of Hemachandra.
118. कंडपाल, लता।
माणिक्यदेव सूरि के नलायनम् का समीक्षात्मक अध्ययन
नैनीताल, 1982, अप्रकाशित 119. कमल कुमारी (श्रीमती)
संस्कृत वरांग चरित का काव्यशास्त्रीय एवं सांस्कृतिक अध्ययन
मगध, 1978, अप्रकाशित 120. कल्पना देवी (कुमारी)
संस्कृत के जैन सन्देश काव्य बरेली, 1989, अप्रकाशित नि०- डा० विद्याभूषण शर्मा, नजीबाबाद (उ०प्र०) श्री चन्द्रपाल सिंह, गोयल हैण्डलूम उद्योग के पास, स्टेशन रोड,
धामपुर (बिजनौर) उ०प्र० 121. कालरा, राजरानी
कविराज कृत राघवपाण्डवीयम् महाकाव्य का समालोचनात्मक अध्ययन मेरठ, 1981, अप्रकाशित (टंकित, पृष्ठ 436) । नि०- डा० कैलाशचंद जैन, सहारनपुर अ०- विषय प्रवेश, (1) कथावस्तु की योजना, (2) राघवपाण्डवीयम् का प्रबन्धत्व, (3) काव्य का अनुभूति पक्ष, (4) वस्तुवर्णन एवं प्रकृति चित्रण, (5) पात्र-योजना तथा चरित्र-चित्रण, (6) भाषा-शैली, (7) अलंकार-प्रयोग एवं छन्द-प्रयोग,
(8) उपसंहार। 122. कुन्तल (श्रीमती)
पुण्याश्रव कथाकोष का समीक्षात्मक अध्ययन बरेली, 1987, अप्रकाशित नि०- डा० रमेशचन्द जैन, बिजनौर (उ०प्र०) D/o श्री कुवेर सिंह, हिन्दू इन्टर कॉलेज, पो० ऑ० चाँदपुर, जिला-बिजनौर (उ०प्र०)
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