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प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ
सूची देने का निर्णय लिया। अतः इनमें से कुछ के उपाधि-वर्ष की प्रामाणिक जानकारी नहीं मिल सकी है, जिनती जानकारी विभिन्न जैन पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्राप्त हुई, वही दी जा रही है।
प्रस्तुत संस्करण में भी हमने प्रामाणिकता का पूरा-पूरा ध्यान रखा है, जिनकी पूर्णतः सही जानकारी नहीं मिली, उन्हें सूची में सम्मिलित नहीं किया गया है, इससे कुछ बन्धु नाराज हो सकते हैं, उनसे क्षमा याचना पूर्वक निवेदन है कि सही जानकारी भेजें, अगले संस्करण में उसे समाहित कर लिया जायेगा। दिये गये वर्ष में एकाध वर्ष का अन्तर हो सकता है क्योंकि उपाधि मिलने के 2-4 माह बाद समाचार छपते हैं, अनेक बार मौखिकी सम्पन्न होने के बाद ही समाचार छाप दिये जाते हैं जब कि वास्तविक उपाधि कई माह बाद मिलती है। कहीं-कहीं नामों की वर्तनी में कुछ अन्तर हो सकता है।
परमपूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद हमें सदैव मिलता रहा है। आचार्य श्री और उनके गुरु आचार्य ज्ञानसागर जी द्वारा प्रणीत साहित्य पर पिछले दशक में सर्वाधिक शोध प्रबन्ध लिखे गये हैं। आचार्य श्री के चरणों में कोटिशः नमोऽस्तु।
परमपूज्य मुनि श्री अभयसागर जी महाराज (संघस्थ, आचार्य विद्यासागर जी महाराज) का आशीर्वाद और निरन्तर सहयोग न मिला होता तो यह कार्य इतना वृहद् और प्रामाणिक न हो पाता। पूज्य मुनिश्री के चरणों में पुनः पुनः नमोऽस्तु।
परमपूज्य आचार्य विद्यानन्द जी महाराज, उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज, मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज, मुनिश्री सुधासागर जी महाराज, मुनिश्री अक्षय सागर जी महाराज का आशीर्वाद हमें सदैव मिलता रहा है उनके श्री चरणों में विनम्र नमोऽस्तु।
परमपूज्य आचार्य सम्राट् डा० शिव मुनि जी महाराज एवं मुनिश्री लोक प्रकाश जी 'लोकेश ने ग्रन्थ की पाण्डुलिपि देखकर बहुमूल्य सुझाव और आशीर्वाद दिये, उनके श्री चरणों में पुनः पुनः वन्दामि।।
प्राकृत, अपभ्रंश और जैन विद्या के प्रचार-प्रसार में अपने जीवन के बहुमूल्य क्षणों का उपयोग करने वाले जिन विद्वानों ने समय-समय पर सूचनाएं देकर उपकृत किया है, उनके प्रति आभारी हैं और जिन्होंने याचना करने पर भी जानकारी भेजने में कृपणता दिखाई है, उन्हें भी हमारा विनम्र प्रणाम ।
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