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Bibliography of Prakrit and Jaina Research
तक हुए शोधकार्यों को भी जोड़ दिया गया है। श्री कैलाश चंद जैन स्मति न्यास, खतौली द्वारा संचालित 'प्राकृत एवं जैन विद्या : शोध प्रबन्ध संग्रहालय में संग्रहीत मुद्रित और टंकित शोध प्रबन्धों का विस्तृत परिचय, यथा प्रकाशक, संस्करण, मूल्य, पृष्ठ संख्या, अध्यायों के नाम आदि यहाँ दिये गये हैं।
द्वितीय संस्करण के बाद से जैन विद्या के क्षेत्र में जहाँ लगभग 500 शोध प्रबन्ध लिखे गये, वहीं अनेक शोध संस्थानों की स्थापना भी हुई किन्तु इनमें से अधिकांश में न शोध है, न संस्थान। नाम मात्र के ही शोध संस्थान ये संस्थान साबित हुए हैं। कुछ संस्थान हैं जहाँ शोध कार्य तेजी से हो रहा है इनमें कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, एल०डी० इंस्टीटयूट, अहमदाबाद आदि के नाम लिये जा सकते हैं। प्रसन्नता की बात है कि इस बीच जैन नामों पर तीन विश्वविद्यालय और एक मेडीकल कालेज की स्थापना हुई है। ये हैं जैन विश्वभारती (Deemed University) लाडनूं (राजस्थान), भगवान् महावीर कोटा खुला विश्वविद्यालय, कोटा (राजस्थान) हेमचन्द्राचार्य नार्थ गुजरात विश्वविद्यालय, पाटन (गुजरात) तथा वर्धमान मेडीकल कालेज, नई दिल्ली।
इधर उपाधि निरपेक्ष शोध कार्य बहुत हुए हैं जैसे हमारा ही "स्वतंत्रता संग्राम में जैन" वृहद् ग्रन्थ लिया जा सकता है। ऐसे कार्यों को इस सूची में नही जोड़ा गया है। हालांकि ऐसा कार्य होना अत्यन्त आवश्यक है, आशा है कोई बड़ा संस्थान इस कार्य को हाथ में लेकर उपाधि निरपेक्ष शोध कार्यों की जानकारी देगा। हमारी हार्दिक इच्छा थी कि हम इस कार्य को करें किन्तु एक तो इस कार्य के लिए समृद्ध पुस्तकालय की आवश्यकता है, जो खतौली जैसे छोटे शहर में सम्भव नहीं है, दूसरे इधर हम 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन ग्रन्थ के बाकी दो खण्डों के लेखन में लगे हुए हैं। समय असीम है उसमें अनन्त सम्भावनाएं निहित हैं।
- इस संस्करण में शोध केन्द्रों की सूची नहीं दी है क्योंकि एल०डी० इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद, पी०वी० इंस्टीट्यूट, वाराणसी, प्राकृत अहिंसा इंस्टीट्यूट वैशाली, कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली के अतिरिक्त अन्य संस्थानों से उपाधि सापेक्ष कार्य नहीं के बराबर हो रहा है। इसी प्रकार निदेशक सूची भी नहीं दी गई है क्योंकि इन्टरनेट पर अनेक वेबसाईटों पर जैन विद्वानों/शोधकर्ताओं के पते उपलब्ध हैं। इच्छुक महानुभावों को वहाँ से ज्ञात कर लेना चाहिए।
आरम्भ में हमने मानद् डी०लिट० उपाधि प्राप्त जैन विभूतियों का उल्लेख किया है इन सभी को हार्दिक वन्दन/नमन । ग्रन्थ के तैयार होते-होते हमने यह
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