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प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ
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C/o श्री रामचन्द्र जैन, 766, किरणविला, अग्रवाल कॉलोनी, जबलपुर (म०प्र०) प्रका०- श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा, ऐशबाग, लखनऊ (उ०प्र०) प्रथम : ...... / 50.00/40 + 260 अ०- (1) गुणस्थानों की सामान्य अवधारणा, (2) आत्म-विकास के चतुर्दश सोपान, (3) गुणस्थानों में कर्म, (4) गुणस्थान और ध्यान, (5) गुणस्थान और समाधि, (6) गुणस्थानों में कर्म एवं काल की क्रिया-प्रतिक्रिया, (7) गुणस्थानों में आत्मदशा एवं अध्यात्मदशा, (8) अन्य भारतीय दर्शनों में गुणस्थान के समकक्ष भूमिकाओं की तुलनात्मक चर्चा, (७) उपसंहार।
569. जैन, भागचंद
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जैन दर्शन की प्रासंगिकता राजस्थान, 2003, अप्रकाशित नि०-- डा० बीना अग्रवाल
570. जैन, मनोरमा (कुमारी)
जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त : एक अध्ययन रोहतक, 1986, प्रकाशित नि०- डा० जयदेव विद्यालंकार, रोहतक
श्री रघुबरदयाल जैन, ब्रह्मान मण्डी, नेहरु विद्यालय, रोहतक (हरियाणा) प्रका०- श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला, पानीपत (हरियाणा) प्रथम : 1993/48.00/16 + 228 अ०- (1) वस्तु स्वभाव, (2) जीव और जीव की कर्मजनित अवस्थायें, (3) पुदगल द्रव्य और पुद्गल की सूक्ष्म- स्थूल अवस्थायें, (4) कर्म तथा कर्म की विविध अवस्थायें, (5) कर्मबन्ध के कारण तथा भेद-प्रभेद, (6) कर्ममुक्ति का मार्ग
(7) कर्ममुक्ति के विविध सोपान-गुणस्थान व्यवस्था। उपसंहार, परिशिष्ट। 571. जैन, मनोरमा (श्रीमती)
सूत्रकृतांग का दार्शनिक एवं समालोचनात्मक अध्ययन उदयपुर, 1995, अप्रकाशित
नि०- डा० उदयचंद जैन, उदयपुर 572. Jain,Manju
Jain Mythology as depicted in the Digambara Literature.
Delhi, 1976, Unpublished. 573. जैन, महीपाल
जैन दर्शन में कर्मवाद : एक तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन आगरा, 1978, अप्रकाशित |
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