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________________ महापुराण भालयलइ पट्ट' चडावियर रायासणि राउ चडावियउ। चितंतहु तासु णयाणयई पालंतहु गामणयरसयई। पुव्वहं परमाउहि संचलिय चालीस चयारि लक्ख गलिय । तइयहं तहिं दियहि सुसोहणइ अच्छंतहु सुहं सणिहेलणइ । अवलोइवि गयणि विलीणु घणु थिउ महिगयणयणु विसण्णमणु । वेरग्गु पहूय जिणवरहु हरि सजव वि णेति ण सिवपुरहु । गय मत्ता महुं वि जणंति मउ पहु रह रहति मुणिधम्ममउ । चामरवाएं नृवु मोडियउ भणु कवणु ण काले तोडियउ । सिरि धरियई वारिणिवारणई पुणु होंति ण मारिणिवारणई। तहिं अवसरि लोयंतिय अइय ते विण्णवंति भत्तिइ लइय । जं इंदियसोक्खु समुज्झियउं तं चारु चारु पई बुझियउं । । धत्ता-जो पई संबोहइ सो संबोहइ सूरहु दीवउ मूढमइ । __ पई मुइवि गुंणुब्भव सामिय संभव को परियाणइ परमगइ ॥९॥ आणंदु ण हियवइ माइयउ पुणु परिबुड्ढहिं देवावलिहिं थिरदीहरहत्थगलत्थियहिं पुणु तेत्थु पुरंदरु आइयउ । आहूँय दुद्धसलिलावलिहिं । चामीयरघडपल्हत्थियहिं । उनके भालतलपर पट्ट बाँध दिया गया और राज्यासन पर राजाको बैठा दिया गया। न्याय-अन्यायको चिन्ता करते और सैकड़ों ग्राम-नगरोंका पालन करते हुए, उनकी परमायुके चालीस लाख पूर्व वर्ष और बीत गये। एक दिन, तब, अपने सुन्दर प्रासादमें सुखसे बैठे हुए उन्होंने आकाश में लुप्त होते हुए मेघको देखा। वह धरतीमें आँखें गड़ाकर उदासमन हो गया। जिनवरको अत्यन्त वैराग्य हो गया। (वे सोचते हैं कि तेजसे तेज वेगवाले भी अश्व शिवपुर नहीं ले जा सकते। मदवाले गज भी मुझमें मद उत्पन्न नहीं करते, रथ मुनिधर्ममय पथका अवरोध करनेवाले होते हैं, चामरोंको हवासे राजा मोड़ दिया जाता है, बसाओ संसारमें कालसे कोन नहीं तोड़ दिया जाता। सिरपर धारण किये गये छत्र, फिर मुल्यका निवारण करनेवाले नहीं होते। उस अवसरपर लोकान्तिक देव आये, उन्होंने भक्तिके साथ निवेदन किया, "जो आपने इन्द्रिय-सुखोंका त्याग किया है, वह आपने अच्छा किया। पत्ता-जो आपको सम्बोधित करता है, वह मूढ़मति दीपक, सूर्यको सम्बोधित करता है ? हे गुणसम्भव स्वामी, आपको छोड़कर और कौन परमगति को जान सकता है ?" ॥९॥ जिसके हृदयमें आनन्द नहीं समा सका ऐसा इन्द्र फिर आया। पुनः दूध और जलोंकी (कलश पंक्तियां ) लानेवाली बढ़ती हुई देवपंक्तियोंने अपने लम्बे स्थिर हाथोंसे गिरती हुई स्वर्ण९. १. P पट्ट । २. A णयरगामसयई। ३. A दिवसि । ४. AP सहुँ । ५. A पहूवउं । ६. AP णिवु । ७. AP गुणण्णव । १०.१. AP परितुट्टिहिं । २. A आहूउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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