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________________ -४०. ११. ३ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित संविउ विउ पोमाइयउ दुम्मो मुप्पि रज्जेगहु परमेसरु पणइणिपाणपिउ बहुखगमाणियफल साउयडं परिसेसेप्पिणु सिरिरर्मणिउरु उप्पाडिउ केसकलाउ किह सकुसुमु सभसलु सु करिवि करि किड रोसपसायणिक्खवणु वासु करेपिणु सावसरि सावत्थिहि वरियामग्गु किड घत्ता-सुररबु मंदाणिलु घणैर्वैरिसियजलु सुरहिउ मणिको डिहिं सहिउ ॥ दायार पुजिउ दुंदुहि वज्जिउ दाणपुण्णु देवहिं महिउं ॥ १०॥ ११. देतेण ण कडु चितर्विड जं संजमजोग्गड बुज्झियउं तं भुंजइ सउवीरोयणउं वत्थालंकारविराइयउ । सिद्धत्थयसिवियारूदु पहु । रखरहिं तियसहिं वहिवि णिउ । दवणु गंपि सहउँय उं । पणवेष्पिणु देवें सिद्धगुरु । भवकुरुई मूलपब्भारु जिह | सइरमर्णे वित्त मयरहरि । "रायहं सहसें सहुं क्खिवणु । ates दिणि दिrयरकरपेसेरि । "देविददत्तणिव भवणि थिउ । ११ अण्णहु का वि णिम्मविउ । दहिसप्पखीर तेल्लुझियउं । पडिसेहियद कोयणउं । Jain Education International ५१ ५ कलशोंकी कतारोंसे भगवान् को स्नान कराया, और वस्त्रालंकारोंसे अलंकृत कर उनकी स्तुति की । दुर्मोहको उत्पन्न करनेवाले राजरूपी ग्रहको छोड़कर सिद्धार्थं नामक शिविकामें बैठकर प्रणयिनियोंके प्राणप्रिय परमेश्वर मनुष्य, विद्याधरों और देवोंके द्वारा ले जाये गये। जिसके फलोंका स्वाद अनेक पक्षियोंके द्वारा मान्य है, ऐसे सहेतुक नन्दनवनमें जाकर देवने लक्ष्मी और स्त्रियोंका अपने चित्तमें त्यागकर तथा सिद्धगुरुको प्रणाम कर अपने केश इस प्रकार उखाड़ लिये मानो संसाररूपी वृक्षकी जड़ोंको हो उखाड़ दिया हो । पुष्पों और भ्रमरों सहित उन्हें अपने हाथमें लेकर शचीरमण ( इन्द्र ) ने क्षीरसमुद्र में फेंक दिया। उन्होंने क्रोध और प्रसादका संयम कर लिया और एक हजार राजाओंके साथ संन्यास ग्रहण कर लिया । उपवास कर पारणा बैलामें, दूसरे दिन, सूर्यको किरणोंका प्रसार होनेपर वह चर्याके लिए श्रावस्ती में गये और इन्द्रदत्त राजाके घरमें ठहरे । घत्ता - देवशब्द, मन्दपवन, सुरभित मेघोंसे बरसा हुआ जल, रत्नोंके साथ दातारकी पूजा हुई | नगाड़े बजे और देवोंने दान पुण्यका सम्मान किया ||१०|| रायहंससहसें । १६. A दाणवंतु । १० ११ (आहार) देते हुए उसने संकटको चिन्ता नहीं की, जो कि किसी दूसरेके निमित्तसे बनाया गया था, और मुनिके लिए उपयुक्त समझा गया था । दही, घी, खीर और तेलसे रहित था, For Private & Personal Use Only १५ ३. A सो हविउ । ४. A दुम्मोह । ५. P रज्जु गहु । ६. P णरखेयारतिय सह । ७. Padds after this: आगहणमासि सियकुहुयदिणि, सिलउवरि णिहिउ उद्दयइण । ८. A रमणिय | १२. A यसरि । ० ९. A मूल पब्भारु । १०. A रोसकसायहं । ११. AP १३. P देखेंवुदत्तं । १४. A वरसि । १५. AP गज्जिउ । ११. १. A चितियउ । २. A दुक्खुक्कोहणउं । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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