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________________ महापुराण [ ३८. १६. ३णमो अदीणकामबाणवारणा णमो महाभवंबुरासितारणा। णमो विसालमोहजालछिदणा णमो जियारिरायरायणंदणा । णमो णिहित्तसुण्णवाइवासणा णमो अणेयमेयभावभासणा। णमो गयालसालसीलभूसणा णमो पसण्ण दिण्णरोसदसणा। णमो विमुक्कदिव्वघोसणीसणा णमो रिसी तवोविहीपयासणा। णमो अणंतसंतसम्मभावणा णमोरहंत मोक्खमग्गदावणा। घत्ता-इय वंदिवि अमराणंदियहि गंदणवणसुच्छायहि ॥ आणेप्पिणु उज्झहि परमजिणु इंदें अप्पिउ मायहि ॥१६॥ १० कालें जंतें जायउ पोढउ जयवइणवजोव्वणि आरूढउ । का वि णारि आलिंगण मग्गइ क वि कामाउर पायहि लग्गइ। का वि कुमारि भणइ मइं परिणहि विरहु भडारा किं तुहं ण मुणहि । एक्कसु देहि दिट्ठि सुहगारी जा जीवमि ता दासि तुहारी। इय णारीयणु होतु रसिल्लउ कामासत्तउ कामगहिल्लउ । रक्खहि देवदेव णियसंग मारिज्जंतु वराउ अणंगें 1 पिउणा सुरवइणा घरु गंपिणु पत्थिउ जिणकुमारु पणवेप्पिणु । पूज्य आपको नमस्कार हो, अदीन काम बाणोंका ध्वंस करनेवाले आपको नमस्कार हो, हे निर्भय आपको नमस्कार, महासंसाररूपी समुद्रसे तरनेवाले आपको नमस्कार, विशाल मोहरूपी जालका छेदन करनेवाले आपको नमस्कार, जितशत्रुके पुत्र आपको नमस्कार; शून्यवादी विचारधाराको समाप्त करनेवाले आपको नमस्कार, अनेक भेदों और भावोंका कथन करनेवाले आपको नमस्कार, आलस्यसे रहित, और शीलसे भूषित आपको नमस्कार, प्रसन्न और क्रोधरूपी दूषणको दूर करनेवाले आपको नमस्कार, दिव्यध्वनिका शब्द करनेवाले आपको नमस्कार, तपकी विधिके को नमस्कार, अनन्त शान्त और समभाववाले आपको नमस्कारः मोक्षमार्गके अर्हन्त आपको नमस्कार । पत्ता-इस प्रकार वन्दनाकर, इन्द्रने, नन्दनवनके समान शोभा धारण करनेवाली अयोध्यामें आकर जिनेन्द्रदेवको उनको माताके लिए अर्पित कर दिया ॥१६।। समय बीतनेपर वे प्रौढ़ हो गये। विश्वपति अजितनाथ नवयौवनमें स्थित हो गये। कोई नारी आलिंगन मांगती है, कोई कामातुर होकर पैरोंसे लगती है, कोई कुमारी कहती है कि "मुझसे विवाह करो। हे आदरणीय क्या आप विरहको नहीं समझते। एक सौभाग्यशाली दृष्टि दीजिए, मैं जीवित नहीं रहूँगी, तुम्हारी दासी हूँ। इस प्रकार रसमय कामसे आसक्त और कामसे गृहीत होते हुए, कामदेवसे मारे जाते हुए नारीजनकी हे देवदेव अपने संगसे रक्षा कीजिए" इस प्रकार पिता और इन्द्रने घर जाकर जिनकुमार अजितको प्रमाणकर निवेदन किया। किसी ३. A P°दिण्णदोस । ४. A P°संतसोमभावणा । ५. A णमो अरहंत । १७. १. A एक्क सुदिठि देहि सुहगारी; P एक्क सदिठि देहि सुहगारी। २. A P add after thia:; कुमरतें ( P कुमरत्ति ) पुणु कालु सुहासिउ, पुश्व अट्ठदहलक्ख पणासिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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