SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता - पण वेष्पिणु पियरई आयरिण सहसा चित्ति वियैप्पिउ || माहि माइ सुरवरहिं मायाबालु सैमप्पि ||१४|| १५ - ३८. १६. २ ] जगगुरु लेवि देव गय तहिं सीहोसण णिहिउ भडारउ इंदजल जमणेरियवरुणह आवाहण करेवि पोमाइवि अमरपंति अवितुट्टै करेपिणु किसलयछण्ण कलस उच्चाइवि देविंदहिं जिणंदु अहिसिंचिड देवं वत्थ परिहाविउ भूसिउ भूसणेहिं साणंदें घत्ता -जाएण जेण जसु बंधुयणु कीलासु वि अविसंकिउ ॥ बहिरंत रंगवइरिहिं ण जिउ अजिउ तेण सो कोक्किउ || १५|| णमो जिणा कर्यतपासणासणा णमो कसायसोयरोयवज्जिया सुरगिरिपंडुसिलायलु जेतहि । मयणबाणसं तार्णेणिवारउ । पवणघणयभवस सिखर किरणहं । जण्णभाउ सब्भावें ढोइवि । णीरु खीरेंमयरहरि भरेपिणु । मंतु पणवसाहा संजोइवि । कुवलयकमलकयंबहिं अंचिउ । देउ दिव्वगंधेहिं विलेविड । णामकरणु विरइउं देविंदें । १६ णमो विसुद्ध बुद्ध सिद्धसासणा । णमो फणिंदेचंदबिंदपुज्जिया । Jain Education International १३ ५. P वियप्पियउ । ६. P समप्पियउ । १५. १. ATP सिंहासणि । २. A संता । ३. P अविरुड्ढ । ४. P खीरु । ५. A देव । १६. १. A P विसुद्धबुद्धि सिद्धसासणा । २. AP फणिदइंदचंदपुज्जिया । १० घत्ता-माता-पिताको आदरसे प्रणाम कर सहसा देवेन्द्रने अपने मनमें विचार किया और मायासे निर्मित कृत्रिम बालक जिनवरकी माताको दे दिया || १४ || ५ १५ विश्वगुरुको लेकर देवता वहां गये, जहाँ सुमेरु पर्वतपर पाण्डुक शिला थी, वहाँ कामदेवके बाणोंका सन्ताप दूर करनेवाले भट्टारक जिनवरको रख दिया । इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत्य, वरुण, पवन, धनद, शंकर, चन्द्र और सूर्यका आह्वान कर संस्तुति की ओर सद्भावसे यज्ञ पूरा कर अविच्छिन्न देवपंक्ति निर्मित कर, क्षीरसागरसे जल भरकर, किसलयोंसे आच्छादित कलशोंको ऊपर कर, 'ओम् स्वाहा' कहकर, नीलकमलोंसे युक्त जलसे देवेन्द्रोंने जिनेन्द्रदेवका अभिषेक किया तथा उन्हें दिव्य वस्त्र पहनाये । दिव्य गन्धोंसे लेप किया, देवेन्द्रने आनन्दपूर्वक अलंकारोंसे उन्हें भूषित किया, तथा उनका नामकरण संस्कार किया । घत्ता - जिसके उत्पन्न होनेसे जिसके बन्धुजन कीड़ाओंमें शंकाविहीन हो उठे और जो बहिरंग तथा अन्तरंग शत्रुओंसे नहीं जीते जा सके इसलिए उन्हें 'अजित' कहकर पुकारा गया ।। १५ ।। For Private & Personal Use Only १० १६ यमके पाशको काटनेवाले हे जिन आपको नमस्कार हो, हे सिद्धबुद्ध और सिद्धशासन आपको नमस्कार हो, कषाय समूह और रोनासे रहित आपको नमस्कार हो; नागेशों चन्द्रोंके समूह से www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy