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________________ ५ १० गुरुचरणारविंदु से वेपिणु वीययवयण विणोयउ अप्पा तिहिं गुत्तिर्हि भावेई वेजीवञ्च करइ मुणिण हहं धम्मु अहिंसालक्खणु अक्खइ आगच्छंतुवसग्गु समिच्छइ दंसमसय सुडसंत ण साइ दंसणसुद्धिविणउ आराहइ विर्कहउ ण कहइ ण रुसइ ण हसइ णाणु निरंतरु तेणब्भसियड एम घोरु तवचरणु चरेष्पिणु घत्ता महापुराण ९. जाय परमभिक्खु तर लेपिणु । पालइ पंचमहव्वयमायड | तेत्तीसंबुहिउपमाणइ किं वण्णैविं पुण्णेणुष्पपर्णेउ जेंवइ णिसिहि ण सोवइ । बालहं वुड्ढहं रुयहय देहह । मित्त वित्त विसमै जि णिरिक्खइ | लंबियकरु उर्भुब्भर अच्छइ । सप्प व लग्ग देहि णउ फेडइ । सहइ परीसह इंदिय साहइ | भीणि णिज्जणि काणणि णिरसइ | कम्मु अहम्मकार संपुसियउ । तित्थयरत्तु णाउं बंधेपिणु । - तेलोक्कचक्कसंखोहणई सुहकम्माई समज्जिवि ॥ मुमुणिवरुणिरसणविहि करिवि चित्तु समत्ति णिउंजिवि ||९|| Jain Education International १० [ ३८. ९.१ पंचाणुत्तर विजयविमाणइ | हत्थमेत्तणु ससहरवण्णउ । ९ गुरुके चरण-कमलों की सेवा कर वह तप ग्रहण कर परम भिक्षु हो गया । वह वीतरागके वचनोंसे ज्ञात, पाँच महाव्रतोंकी पांच-पाँच भावनाओं का पालन करता है, वह स्वयंको तीन गुप्तियोंसे भावित करता है, नीरस भोजन करता है, रात में नहीं सोता है । रोगसे जिनका शरीर आहत है ऐसे बाल और वृद्ध मुनिस्वामियोंकी वैयावृत्य ( सेवा ) करता है, अहिंसा लक्षणवाले धर्मकी व्याख्या करता है, जो मित्र और शत्रुको समानरूपसे देखता है, आते हुए उपसर्गकी सहन करता है, हाथ ऊपर कर खड्गासन में स्थित रहता है । काटते हुए डांस और मच्छरोंको नहीं भगाता, शरीर पर लगे हुए साँपको भी नहीं हटाता, दर्शनविशुद्धि और विनयको आराधना करता है, परीषहों को सहन करता है, और इन्द्रियोंको सिद्ध करता है, विकथा नहीं कहता, न क्रोध करता है और न हँसता है, भीषण और निर्जन काननमें निवास करता है। इस प्रकार उसने निरन्तर ज्ञानका अभ्यास किया, और अधर्म करने वाले कर्मको नाश कर दिया इस प्रकार घोर तपश्चरण कर तीर्थंकर प्रकृतिका बंधकर । घत्ता - त्रिलोकचक्रको क्षुब्ध करनेवाले शुभ कर्मोंका अर्जनकर, अनशन विधिकर और चित्तको सम्यक्त्वमें नियोजित कर वह मृत्युको प्राप्त हुए ||९|| १० तैंतीस सागर आयु प्रमाणवाले पांचवें विजयनामक अनुत्तर विमानमें वह उत्पन्न हुए । पुण्य से उत्पन्न उनका क्या वर्णन करूं, उनका एक हाथ प्रमाण शरीर चन्द्रमाके रंगका प्रतिकार९१. P विष्णायउ । २. A गोवइ । ३ AP जेमइ । ४. AP विज्जावच्चु । ५. AP समु । ६. P उब्भब्भउ । ७. AP झाडइ । ८. A विकहउ कहइ ण हसइ ण रुसइ । ९. AP अणसण | १०. १. A तसं । २. AP पंचाणुत्तरि । ३ AP वण्णमि । ४. A पुण्णेण पउण्णउ; P पुण्णेणु पण । ५. AP हत्यमेत्तु तणु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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