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________________ -३८. ८. १३] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-तहिं अत्थि सुसीमा णाम पुरि सररहछण्णमहासर ॥ “णंदणवणसं ठियदेवसिरमउडरयणकर सियघर ॥७॥ परिहाजलपरिघोलिररसणहिं हिमपंडुरपायारणिवसणहिं । विविहदुवारंतरवरवयणहिं गेहगवक्खुग्घाडियणयणहिं । ●वधूमधम्मेल्लेयकसणहिं तोरणमोत्तियमालादसणहिं । लंबियचलचिंधावलिवत्थहिं ठाणमाणलक्खणहिं पसत्यहिं । मंदिरकंचणकलसयथणियहि किं वणिजइ सीमंतिणियहि । जं वण्णहुँ भेसइ वि ण सक्का सुरवइ फणिवइ अवरु वि सक्कइ। अस्थि विमलवाहणु तहिं राणउ जर्से विहवेण ण सक्कु समाणउ । जसु सोहग्ग वम्महु भज्जइ तेण अणंगत्तणु पडिवज्जइ । जसु वइवसुवसु दंडहु संकइ तेयहु तरणि तवंतु चवकइ । पडिगयभडथड भड भंजंतहु तासु णरिंदलच्छि भुंजंतहु । जाणियसारासारविवेयउ एक्कहिं दिणि जायउ णिवेयउ । घत्ता-पुरु परियणु हय गय रह सधय अंतेउरु अवगणिवि ।। सीहासणछत्तई चामरइं गउ सयेलई तणु मण्णिवि ।।८।। घत्ता-उसमें सुसीमा नामकी नगरी है जिसके सरोवर कमलोंसे आच्छन्न हैं, तथा लक्ष्मीगृह नन्दनवनोंमें बैठे हुए देवोंके सिरोंके मुकुटोंकी किरणोंसे युक्त हैं ।।७।। परिखाके जलोंकी शब्द करनेवाली करधनियों, हिमकी तरह स्वच्छ प्राकार रूपी वस्त्रों, विविध द्वारोंके अन्तररूपी मुखों, घरोंके झरोखों रूपो उघड़े हुए नेत्रों, धूपके धुओं रूपो केशपाशोंसे काले तोरणोंकी मुक्तामालाओंके दांतों, लम्बे चंचल ध्वजोंको आवलियोंके वस्त्रों, स्थान और मानके प्रशस्त लक्षणों, मन्दिरोंके स्वर्णकलशोंके स्तनों वाली उस नगरी रूपी सोमंतिनी ( नारी)का क्या वर्णन किया जाये, जिसका वर्णन बृहस्पति भी नहीं कर सकता, देवेन्द्र नागराज और दूसरा कोई भी वर्णन नहीं कर सकता। उस नगरीमें विमलवाहन नामका राजा है, इन्द्र भी उसके वैभवके समान नहीं है, जिसके सोभाग्यसे कामदेव भग्न हो जाता है इसीलिए उसके द्वारा अंगहीनत्व धारण किया जाता है, जिसके दण्डसे यमकी सेना डर जाती है, जिसके तेजसे सूर्य चमकता रहता है, शत्रुओंके हाथियों और योद्धाओंके समूहको नष्ट करते हुए तथा राजलक्ष्मीका भोग करते हुए उसे जिसमें सार और असारका विवेक जान लिया गया है, ऐसा वैराग्य एक दिन हो गया। घत्ता–पुर परिजन अश्व गज ध्वज सहित रथ और अन्तःपुरकी उपेक्षाकर, तथा समस्त सिंहासनों छत्रों चामरोंको तिनकेके बराबर समझकर चला गया ।।८।। १२. P महासरि । १३. P°वणमंडिय कसहिं । १४. AP°देवसिरि मउड । १५. P सियधरि । ८. १. P धूपं । २. AP धम्मेल्लहिं । ३. P रायमाणं । ४. A जसु विहवें सक्कु वि ण समाणउ । ५. PT वइवसुपसु । ६. A चमक्कइ; P चमुक्कई । ७. Pघडथई। ८. A सिंहासण; P सिंघासण । ९. AP सयल वि तिणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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