SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण [६५. २१. १० १. केसरिकेसरग्गु किं छिण्णउं केण गरलु हालाहलु चिण्ण उं । केण सदेहु हुणिउ कालाणणि को पइट्ट वइवसमुहघंधलि । घत्ता-इजइ कहिउ रुयंतिइ भोयणरिद्धि भरि ।। सहसबाहु कयवीरु वि मुंजिवि मझु घरि ॥२१॥ २२ जहिं भुत्तउं तहिं भाणउं भिंदिवि कंतु महारउ कंडहिं छिदिवि । गेय रिउ हरिवि महारिय धेणुय ता संथविय संपुत्तिहिं रेणुय । गज्जिवि पुणु वि रोसरसभरियउ णयणजुयलजलु जणणिहि पुसियउ । ता जेट्ठहु उवइट्ठउ मायइ परसुमंतु दिण्णासीवायइ । गय बेण्णि मि जण वीरं महाइय तं साकेयणयक संपाइय । करि तुरंगु रहवरु णरु णावइ दस दिसु चडुलु परसु परिधावइ । लंबिरकेसइं भउहाभीसई पिउपुत्तहं खणि छिण्णई सीसई । णासंत वि खत्तिय णिक्खत्तिय वइवसमुहकुहरंतरि घत्तिय । जो भूआलु णाम चिरु राणउ जो तउ चरिवि मरिवि सणियाणउ । १० देउ महासुकंतरि जायउ । जो पुणरवि जम्मंतरि आयउ । समलं तेण गम्भेण पलाणी सइ विचित्तमइ णामें राणी। किसने चूर-चूर किया है ? उसने शेषनागके फनसमूहको क्यों चूर-चूर किया है ? सिंहके अयालके अग्रभागको किसने छुआ? गरलविषको किसने ग्रहण कर लिया है ? किसने कालाननमें अपने शरीरको होम दिया है ? यमकी मुखरूपी विडम्बनामें कोन पड़ गया है ?" घत्ता-आदरणीया ( मां ) ने रोते हुए कहा, "भोजनकी ऋद्धिसे भरपूर मेरे घर में भोजन करके सहस्रबाहु और कृतवीर-॥२१॥ २२ जिस पात्र में उन्होंने खाया, उसीमें छेद कर और मेरे स्वामीको तीरोंसे छेदकर दुश्मन हमारी गायका हरण कर ले गया।" तब पुत्रोंने अपनी मां रेणुकाको सान्त्वना दी। फिर क्रोधके रससे भरे हुए उन दोनोंने गरजकर मांको दोनों आंखोंके आँसू पोंछे। जिसने आशीर्वाद दिया है ऐसी माने, तब बड़े पुत्रके लिए परशुमन्त्रका उपदेश दिया। वीर और महा-आहत वे दोनों गये और उस साकेत नगर पहुंचे। हाथी-घोड़ा, रथवर और मनुष्यको भाँति वह चंचल फरसा दसों दिशाओंमें दौड़ता है। पिता-पुत्रके लम्बे केशवाले, भौंहोंसे भयंकर सिरोंको उसने क्षण-भरमें काट डाला। भागते हुए क्षत्रियोंको भी उसने धूलमें मिला दिया और उन्हें यमके मुखरूपी कुहरमें डाल दिया । जो पुराना भूपाल नामका राजा था और जो तप कर निदानपूर्वक मरा था, महाशुक्र स्वर्गमें देव हुआ था और पुनः जन्मान्तरमें आया था। उसके साथ गर्भ लेकर (उसे गर्भमें रखकर) विचित्रमती नामकी उस सती रानीने वहांसे पलायन किया। ८. A जिं छित्तउ । ९:AP भुत्तउं । १०. AP हरि । २२. १. AP गउ । २. AP महारी । ३. A सपुत्तहि । ४. P धीर । ५. AP संपाइय । ६. AP भूपालु । ७. AP सो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy