SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६१ -६५. २१.९] महाकवि पुष्पदन्त विरचित दुद्धे सिंचइ वयणु समिच्छइ ओरसंति णियडुल्लइ अच्छइ । जाम ताम णियव इरिहिं चप्पिवि रोवइ रेणुय विहुरु वियप्पिवि । हा हा कंत कंत किं सुत्तर कि ण चवहि महु काई विरत्तउ। मुच्छिओ सि किं तवसंतावें कि परवसु थिउ झाणपहावें। लइ कुसुमाइं घट्ट लइ चंदणु करहि भडारा संझावंदणु । घत्ता-उढि णाह जलु ढोवहि तण्हाणिरसणउं ॥ करि सहवासियहरिणहं करयलफंसणउं ॥२०॥ २१ दावहि एयहु कुवलयकतिहि जलु होमावसेसु सिसुदंतिहि । उट्ठि णाह तुहुं एक्कु जि जाणहि तणयहं वेयपयई वक्खाणहि । तेहिं वि अजु काई सुइराविउं अवरु किं पि किं दुग्गि विहाविउ । जहिं गय कंदमूलफलगुंछेह तहिं किं कमि णिवडिय खलमेच्छह । ण मुणंति जं जणयहु जायउ ता तहिं सुयजुवलुल्लउं आयउं । आर्यण्णवि तहिं जणणिहि रुण्णउं पिउमडउल्लउं बाणविहिण्णउं । जाईवि दोहि मि थीयणसारी पुच्छी अम्माएवि भडारी । भणु भणु केणे ताउ संघारिउ केण संपाणणासु हक्कारिउ । कुलिसिहि कुलिसु केण मुसुमूरिउ सेसफडाकडप्पु किं चूरिउ । नहीं जाती, ( सींग मारकर ) पीछे हट आती है। धरतीपर पड़े हुए अपने स्वामीको देखती है। पूंछसे हवा करती है, जीभसे चाटती है। दूधसे सींचती है, उसका मुख देखती है, चिल्लाती है और जब उसके निकट रहती है, तबतक अपने शत्रुओंके द्वारा घिरी हुई रेणुका दुखका विचार कर रोती है, "हा-हा हे स्वामी, तुम क्यों सो गये ? मुझसे बोलते क्यों नहीं, मुझसे विरक्त क्यों हो? तपके सन्तापसे मूच्छित क्यों हो? ध्यानके प्रभावसे परवश क्यों हो? लो ये फूल, लो यह चन्दन घिसा । हे आदरणीय, सन्ध्यावन्दन करिए । पत्ता-हे स्वामी, उठिए । प्यासको दूर करनेवाला जल ग्रहण करिए और सहवास करनेवाले हरिणोंका करतलसे स्पर्श कीजिए ? ॥२०॥ कुवलयके समान कान्तिवाले बालगजको होमावशेष जल दिखाओ। हे स्वामी, तुम उठो । एक तुम्हीं वेदपदोंको जानते हो और बच्चोंके लिए उनकी व्याख्या करते हो। उन्होंने भो आज क्यों देरी कर दी? क्या कुछ और वनमें उन्होंने देख लिया है ? जहाँ कन्दमूल और फलके गुच्छोंके लिए गये हुए वे क्या दुष्ट म्लेच्छोंके हाथ पड़ गये हैं कि जो वे पिताकी मृत्युको नहीं जानते?" इतने में वे दोनों पुत्र वहां आ गये। वहां अपनी मांका रोना सुनकर और पिताके शवको तीरोंसे छिदा हुआ देखकर दोनों, स्त्रीजनमें श्रेष्ठ आदरणीय माता रेणुका देवीसे पूछा-"बताओबताओ, किसने पिताको मारा ? किसने अपने प्राणोंके विनाशको ललकारा है ? वज्रसे वज्रको २. A णियडुल्लिय; P णियदुल्लइ । ३. A णियवइउरि। २१.१. AA दुग्गु । २. AP गोंछहं । ३. AP जणणह। ४. A आयण्णिवि तहिं; P आयण्णंतहि । ५. A जोयवि । ६. P ताउ केण । ७. A सुपाणणासु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy