SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ६५. ११.१० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित कार्ले कालु जाम पलट्टइ परिखावंसु सियमंदिरि दुद्धरवइरिवीरसंघारउ सुंदर लक्खणलक्खियकाय उ वीणालाहि मज्झे खामहि सय बिंदु रिंद कुलहंसें सिसु जमयग्गि णाम उप्पण्णउ बालैत्तम्मि तेण से विउ वणु अवरु तहिं जि दढगाहिणरेसरु वेणि मि समउं सोक्खु भुंजे प्पिणु णिउ जिणवरैरिसि सोत्तिउ तावसु मित्तं मित्तु वुत्तु णड जुज्जइ वि तासु वयणु अवहेरिउ एत्थु कहंतरु अवरु पवट्टइ । सहसबाहु णरवइ कोसलपुरि । कण्णाकुज्जहि राणउ पारउ । धत्ता-णाम विचित्तमइ सइ तेण मुणालभुय ॥ सहसबाहुणरणाहहु दिण्णी नियय सुय ||१०| ११ तहि कयवीरु णाम सुउ जायउ । पारयेविहिणिहि सिरिमइणामहि । णियजसस सहरधव लियवंसें । जणणिमरणसोएं णिग्विण्णउ । जग जाय तवति तवोह | तासु मित्तु हरिसम्मु सुदियवरु । जइ जाया इच्छिउ बडे लेपिणु । मोहमंदु मिच्छावसु । तावसमग्गे जम्मु ण छिज्जइ । उत्तरु किंपि वि णेय समीरिउ । हू Jain Education International ४५३ १० १० तक सोलह सागर समय है तबतक वह समर्थं सुरवर स्वर्ग में रहा । जबतक समयके द्वारा समय पलटता है और यहाँ दूसरा कथान्तर प्रारम्भ होता है। सफेद घरोंसे युक्त अयोध्यानगर में प्रवर इक्ष्वाकुवंशीय राजा सहस्रबाहु था । दुर्धर शत्रुवीरोंको संहार करनेवाला कान्यकुब्जका राजा पारत था । ५ धत्ता - उसने अपनी मृणालके समान भुजाओंवाली सती कन्या विचित्रमती राजा सहस्रबाहुको दे दी ||१०॥ ११ उसका लक्षणोंसे लक्षित शरीर सुन्दर कृतवीर्यं नामका पुत्र हुआ । वीणा के समान बोलनेवाली मध्य में क्षीण श्रीमती नामकी पारतकी बहनसे, नरेन्द्रकुलके हंस अपने यशरूपी चन्द्रमासे वंशको धवलित करनेवाले शतबिन्दुको जमदग्नि नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । माताकी मृत्यु के शोक से वह विरक्त हो गया । बचपन में उसने वनमें तपस्या की और जगमें वह तपसे तीव्र तपस्वी के रूप में प्रसिद्ध हो गया । वहाँपर एक दृढ़ग्राही राजा था । श्रेष्ठ द्विजवर हरिशर्मा उसका मित्र था । साथ-साथ सुखका उपभोग कर दोनों अपना इच्छित व्रत लेकर यति हो गये । राजा ( दृढ़ग्राही ) जैनमुनि हुआ और मोहसे मूर्ख और मिथ्यात्वके वशीभूत होकर तापस हो गया । मित्रने मित्रसे कहा कि यह ठीक नहीं है, तुम्हें तपस्वी मार्ग में अपना जन्म नष्ट नहीं करना चाहिए । ब्राह्मण For Private & Personal Use Only ५. AP°वंसितह मंदिरि । ६. AP सहसबाहं । ११. १. A सुंदर । २. AP हिणिहि । ३. A बालत्तणि जि । ४. AP तउ तिव्वु । ५. AP वउ । ६. A वर सिरि सोमित्तिउ; P वररिसि सोमित्तिउ । ७. P मेहमदु । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy