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________________ -६४. ६.७] महाकवि पुष्पदन्त विरचित कत्तियणक्खत्ति णिसाविरामि . थिउ गम्भि भडारउ पउरधामि । सीहरहु राउ अहमिंदु देउ वणिज्जइ किं णिवाणहेउ । वणवासहिं घल्लियकब्बुरेहिं । थुउ 'इंदपडिंदाइहिं सुरेहिं । गइ संतिणाहि मलदोसहीणि पल्लोवमद्धि सायरि वि खीणि । वईसाहमासि पडिवयहि दियहि अग्गेयजोइ णरणाह पियहि । जायंउ जिणु कयतइलोकखोहु सुरवइ संपत्तु ससुरवरोहु । णिउ सुरगिरिसिरु सुरणाहणाहु णाणत्तयसलिलवरंभवाहु । धत्ता-सिंचिवि खीरघडेहिं जिणु अंचिउ गवसयवत्तहिं ॥ ___ इंदं रुंदाणंदयरु जोइउ दससयणेत्तहिं ॥ ५ ॥ वंदिवि पुणु णामु केहि वि कुंथु लंघेप्पिणु दीहरु पवणपंथु । पुरु आविवि जणणिहि दिण्णु बालु गउ सग्गहु हरि सुरचक्कवालु। पोढत्तभावि थिउ कणयवण्णु कंतीइ पुण्णचंदु व पसण्णु । पहु पंचतीसधणुतुंगकाउ सिरिलंछणु जयदुंदुहिणिणाउ । तेवीससहसवरिसह सयाई सत्तेव सपण्णासई गयाई। चरणंभोरहण मियामरासु णियबालकलीलाइ तासु । पुणु तेत्तिउ मंडलियत्तणेण तेत्तिउ जि चक्कपरियत्तणेण । दसमीके दिन मानवोंको सुख देनेवाले कार्तिक नक्षत्र में निशाके अन्तमें आदरणीय वह सिंहरथ राजा अहमेन्द्र देव प्रवरधाम और गर्भमें आकर स्थित हो गया। उसके निर्वाणके कारणका क्या वर्णन किया जाये? जिन्होंने स्वर्णकी वर्षा की है ऐसे वनवासियों, इन्द्र-प्रतीन्द्रों आदि देवोंके द्वारा उनकी स्तुति की गयी। मलदोषसे रहित शान्तिनाथ तीर्थकरके बाद लक्ष्मी उत्पन्न करनेवाला आधा पल्य समय बीतनेपर वैशाख शुक्ल प्रतिपदाके दिन राजाओंको प्रिय आग्नेय योगमें त्रिलोकको क्षोभ उत्पन्न करनेवाले जिनका जन्म हुआ। सुरवर-समूहके साथ इन्द्र भी उपस्थित हुआ। देवेन्द्रोंके नाथ और ज्ञानरूपी सलिलके श्रेष्ठ मेघ उनको समेरु पर्वतपर ले जाया गया। पत्ता-वहीं क्षोरके घड़ोंसे अभिषेक कर फिर उनको नवकमलोंसे अंचित किया। इन्द्रने विशाल आनन्द उत्पन्न करनेवाले उन्हें हजार नेत्रोंसे देखा ।।५॥ फिर वन्दना कर, उनका नाम कुन्थु कहकर, लम्बे पवन-पथको पार कर, नगरमें आकर और बालक को देकर देवसमूहका पालक इन्द्र चला गया। स्वर्ण रंगवाले वह प्रौढ़ताको प्राप्त हुए। कान्तिमें वह पूर्णचन्द्रके समान प्रसन्न थे। स्वामी पैंतीस धनुष प्रमाण ऊंचे थे। वह श्रीलांछन और जय-जय दुन्दुभि निनादसे युक्त थे। जिनके चरण-कमलोंमें देव नमित हैं, ऐसे उनके नृपबाल क्रीड़ामें तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष बीत गये। फिर इतने ही वर्ष अर्थात् तेईस हजार सात सौ पचास वर्ष राज्य करते हुए और इतने ही वर्षे (२३७५०) चक्रवर्तित्वमें, २. AP कित्तियं । ३. A बहसाहमासि पडिवयह दियहि; P वइसाहमासि सेयपडिवयहि दियहि । ४. AP जायउ जिणिदु तेलोक्कखोह ।। ६. १. AP करिवि । २. A सुरु चक्कवालु । ३. APणविय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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