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________________ महापुराण [६४. ४.१ वारणं मयालीणछप्पयं गोवई खुरुभिण्णवप्पयं । केसरि गलालंबिकेसरं गोमिणी सुमालाजुयं वरं । उग्गयं हिमंसुं दिणेसरं रत्तमीणजुम्म रईसरं। सायकुंभकुंभाण संघडं पंकयायरं लच्छिपायडं। खीरवारिरासिं महारवं विट्ठरं सकंठीरवं णवं। मंदिरं सुराणं विहावियं णायगेहमहिरायसेवियं । मेलेयं मणीणं विचित्तयं झत्ति धूमकेउं पलित्तयं । राइछेयए संविउद्धिया सा णिवस्स वजरइ मुद्धिया । रत्तियाविरामे णियच्छियं दंसणावलिं कयसुहच्छियं । कहइ तीइ तिस्सा फलं पई होहिही तुहं सुउ महामई । इंदचंदणाइंदवंदिओ दिव्वणाणि णिज्जियमणिंदिओ। चकवट्टि भोत्तूण भूयलं पाविही पयं परमणिकलं । घत्ता-तं णिसुणिवि संतु? सइ आइय मंदिरु मीणइ ।। बुद्धि लच्छि सिरि कंति हिरि दिहि कित्ति वि लीलागइ ॥४॥ कय धणएं दरिसियसुयणतुहि सावणमासंतरि कसणपक्खि छम्मासु जाम ता रयणेवुट्ठि। दहमइ दिणि माणवजणियसोक्खि । जिसके मदमें भ्रमर लीन हैं ऐसा गज, अपने खुरोंसे वप्रकोड़ा करता हुआ बैल, गले तक लटकती हुई अयालवाला सिंह, लक्ष्मी, सुन्दर मालाका उत्तम युग्म, उगता हुआ चन्द्र और सूर्य, खेलता हुआ रक्त. मीनयुगल, स्वर्णकुम्भोंका युग्म, शोभाको प्रकट करता हुआ सरोवर, महाशब्दवाला क्षीरसमुद्र, नव सिंहासन, देवोंका विमान, नागराजोंसे सेवित नागभवन, मणियोंका विचित्र संगम और शीघ्र ही प्रदीप्त अग्निको उसने देखा। रात्रिका अन्त होनेपर जागी हुई वह मुग्धा राजासे कहती है कि रात्रिके अन्त में मैंने शुभ और इच्छितको करनेवाली स्वप्नावली देखी है। पति उससे उसका फल कहता है कि तुम्हारा महामतिमान् पुत्र होगा। इन्द्र-चन्द्र और नागेन्द्रसे वन्दित दिव्यज्ञानी मन और इन्द्रियोंके विजेता, चक्रवर्ती जो भूतलका भोगकर परम निष्कल पद ( मोक्षपद ) प्राप्त करेगा। पत्ता-यह सुनकर वह सती सन्तुष्ट हुई। मेनका उसके घर आयो। बुद्धि-लक्ष्मीश्री-कान्ति-ही-धृति और लीलागति कीर्ति भी ॥४॥ कुबेरने सुजनको सन्तुष्ट करनेवाली रत्नवृष्टि छह माह तक की। श्रावण माहके कृष्णपक्षमें ४. १. A खुरविभिण्ण । २. AP गोमिणि । ३. A हिमेसुं । ४. P संघणं । ५. A मेलयं विचित्तं मणीणयं ६. AP तुहं सुओ पहोही महामई । ७. A संतुट्ठमइ । ५.१. A रयणविट्टि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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