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________________ [६४.६.८ ४४० महापुराण जइयतुं परिछिण्णउ कालु दीहु तइयतुं परमेसरु पुरिससीहु । गउ कहिं मि वणंतर रमणकामु दिटुउ रिसि तेण तवेण खामु । १० मत्तंडचंडकिरणई सहंतु दुम्मुक्कजम्मविलसिउ महंतु । घत्ता-सो तजणियइ दंसियउ मंतिहि तेण गरिंदें । जोयहि दुच्चैरु तवचरणु चिण्णउं एण रिसिंदें ॥६॥ छडिवि 'कुडंबु कुविडंबु सन्तु छड्डिवि कुलबलु छलमाणगवु । वणि पइसिवि णिहसिवि इंदियाई अवगणिवि दुजणणिदियाई । चंगउ ववसिउ जइपुंगमेण लइ हर मिजामि एण जि कमेण । तं णिसुणिवि मत बुत्त एम एयइ णिट्ठइ तउ करिवि देव । जाएसइ कहिं णिम्मुकगंथु तं णिसुणिवि भासइ देउ कुंथु । जाएसइ तहिं जहिं भूयगामु णउ पहवइ लोहु ण कोहु कामु । जाएसइ तहिं जहिं हेमकंति गउ परमप्पउ परमेट्ठि संति । हो हउं मि पवञ्चमि तेत्थु तेम . ण णियत्तमि काले कहिं मि जेम । घरु आवेप्पिणु संसरासईहि ता पडिबोहिउ सुरवरजईहिं । १० अहिसेउ विरइउ पुरंदरेण कुलि णिहिउ सतणुरुहु जिणवरेण । पत्ता-सिवियहि तेणारुहणु किउ विजयहि विजयपयासहि ॥ ___णाणामणिसिहरुज्जलहि लग्गखगाहिवतियसहि ॥७॥ इस प्रकार जब उनका लम्बा समय निकल गया, तब वह पुरुष श्रेष्ठ परमेश्वर रमण करनेकी इच्छासे कहीं भी वनान्तरमें चले गये। वहां उन्होंने तपसे क्षीण एक मुनिको देखा-सूर्यकी प्रचण्ड-किरणोंको सहन करते हुए महान् तथा जन्मकी चेष्टाओंसे मुक्त। पत्ता-उस राजाने अपनी तर्जनीसे मन्त्रियोंके लिए उन्हें बताया कि देखो इन ऋषीन्द्रने कठोर तपका आचरण किया है ॥६॥ कुत्सित विडम्बनावाले सब कुटुम्बको छोड़कर; कुलबल, कपट, मान और गर्वको छोड़कर, वनमें प्रवेश कर, इन्द्रियोंका उपहास कर, दुर्जनोंकी निन्दाकी उपेक्षा कर इन यतिश्रेष्ठने बहुत अच्छा किया। लो मैं भी इसी परम्परासे जाता हूँ। यह सुनकर मन्त्रीने इस प्रकार कहा-"हे देव, इस निष्ठासे तपकर परिग्रहसे रहित, यह कहां जायेंगे?" यह सुनकर कन्थु देव कहते हैंकि वह वहां जायेंगे जहाँ प्राणिसमूहको लोभ, क्रोध और काम प्रभावित नहीं करते। वहां जायेंगे जहां स्वर्णकान्ति शान्तिजिन परमेष्ठी हों, मैं भी उसी प्रकार वहां जाऊंगा, जहाँसे समयके साथ वापस नहीं आऊँगा। तब घर आकर लोकान्तिक देवोंने अपनी वाणीमें उन्हें सम्बोधित किया। इन्द्रने अभिषेक किया। जिनवरंने अपने पुत्रको कुलपरम्परामें स्थापित किया। धत्ता-उन्होंने विजयको प्रकाशित करनेवाली, नाना मणिशिखरोंसे उज्ज्वल तथा जिसमें विद्याधर राजा और देव लगे हुए हैं, ऐसी शिविकामें आरोहण किया ॥७॥ ४. AP दुक्कम्मजम्म । ५. A दुद्धरु । ७. १. A कुटुंबु । २. A सुसरासईहि; KT recard: सुसुहासईहिं इति पाठे अतीव शोभनभाषिभिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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