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________________ -६३. ८.११]. महाकवि पुष्पदन्त विरचित अइरीपुत्तं खमदमजुत्तं। खाइयभावं संतिं देवं"। ते वंदंते "सुहं झायंते । पंजलिहत्था पणवियमत्था। भत्तिरसाला विलुलियमाला। पत्ता-मउ वज्जइ गई पडिवज्जइ पंचिंदियई वि दंडइ॥ पई होतें मग्गु दिसतें जणु संसारि ण हिंडइ ॥७॥ तओ कोसिएणं जसेणं सिएणं । कयं मुक्कडंभं महामाणखंभ। महाधम्मलंभ महापंकयंभं। महाखाइयालं महापुप्फमालं। महाधूलिसालं महाणट्टसालं। महासाहिवंतं महाकेउकंतं । महावेइयम्म महाथूहहम्मं । महादेवछण्णं महासाहुपुण्णं । महारिद्धिरूढं महापीहैपीढं। महासोयरत्तं महासेयछत्तं । महाचामरिल्लं महादुंदुहिल्लं। की किरणोंकी शिखावाले ), गुणसमूहके पात्र, कमलनयन, ऐरापुत्र क्षमा और संयमसे युक्त; क्षायिकभाववाले शान्तिदेवकी वे वन्दना करते हैं, उनका शुभ ध्यान करते हैं, हाथको अंजलि बांधे हुए, मस्तक झुकाये हुए, भक्तिसे मीठे और मालाएं हिलाते हुए। घत्ता-जन मदका त्याग करता है, मोक्षगतिको स्वीकार करता है, पांचों इन्द्रियोंको दण्डित करता है, आपके रहनेपर और उपदेश देनेपर वह (जन) संसारमें परिभ्रमण नहीं करता ॥७॥ तब यशसे श्वेत इन्द्रने दम्भसे मुक्त महामानस्तम्भ बनवाया जिसमें महाधर्मकी प्राप्ति है, महाकमलोंका जल है, जो महान् खाइयोंसे सहित है, जिसमें महानृत्यशाला है, जो महावृक्षोंसे युक्त है, जो महाध्वजोंसे सुन्दर है, जो महावेदिकाओंको रचनासे युक्त है, जिसमें स्थूल प्रासाद हैं, जो महादेवोंसे व्याप्त हैं, जो महामुनियोंसे सम्पूर्ण है, महाऋद्धियोंसे प्रसिद्ध है, महासिंहासनोंसे युक्त है, महान् अशोक वृक्षोंसे आरक्त है, महाश्वेतछत्रोंवाला है, महाचामरोंसे युक्त है, ८. AP°पुतें । ९. A oinits खमदमजुत्तं; P adds : दोगविचत्तं । १०. AP'भावें । ११. AP देवें। १२. A तं वदंति; P तें बंदंतें। १३. A मुहूं जोयंतें; P सुहं जोयंतें। १४. A मइ । ८. १. AP मुक्कदंभं । २. Aथूलहम्मं । ३. AP सीहवीढं । ४. AP महासोयवंतं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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