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________________ महापुराण [ ६३. ८. १२महापुप्फवासं . महादिव्वभासं । महादित्तिवंतं महंतं पवित्तं । घत्ता-पडिहारहिं णायकुमारहिं सेविजंतु दयावरु ॥ गंभीरहिं हयजयतूरहिं समवसरणु गउ जिणवरु ॥ ८॥ अक्खइ धम्म कम्मु ओसारइ सत्त वि तच्चई जणहु वियारइ । • अह्रह धरणिहिं माणु पयासइ सग्गविमाणहं पंतिउ भासइ । पायालंतरि भवणसहासई चलणिञ्चलई मि जोइसवासई । जीवकम्मपोग्गलपरिणामई कहइ भडारउ णाणाणामई। चक्काउहपहूइ तहु गणहर जाया छत्तीस वि जणमणहर। ' अट्ठसयई पुव्वंगवियाणहं रिसिहिं कटुतणकणयसमाणहं । एकतालसहसई वसुसमसय ‘सिक्खसुदिक्खसिक्खपारंगयं । सहसई तिण्णि अवहिणाणालहं चउ केलिहिं पि हियतमजालहं।। विकिरियावंतह छह भणियई मणपज्जवधराहं चउ गणियई। १० वाइहिं दोसहसाई णिरुत्तई सयचउक्क अग्गलउ पउत्तई। महादुन्दुभियोंसे परिपूर्ण है, महापुष्पोंको वाससे युक्त है, महादिव्यभाषासे पूर्ण है, महादीप्तिसे युक्त है और महान् पवित्र है। 'घत्ता-प्रतिहार नागकुमार देवों द्वारा सेवित दयावर जिनवर शान्तिनाथ गम्भीर आहत विजय तूर्यों के साथ समवसरणके लिए गये ||८|| वह धर्मका कथन करते हैं, कर्मका निवारण करते हैं, जनके लिए सातों तत्त्वोंका विचार करते हैं, आठवीं भूमि ( मोक्षभूमि ) का मान प्रकाशित करते हैं, स्वर्गके विमानोंकी पंक्तिका कथन करते हैं, पातालके भीतर, हजारों भवनवासियों, चल और निश्चल ज्योतिषवासियों, जीवकर्म और पुद्गलके परिणामोंका नाना नामोंसे आदरणीय वह वर्णन करते हैं। चक्रायुध आदिको लेकर उनके जनमनोंके लिए सुन्दर छत्तीस गणधर थे। पूर्वांगोंको जाननेवाले तथा काष्ठ तिनका और सोनेको समान समझनेवाले आठ सौ ऋषि थे। शिक्षा और दोक्षाकी सीखमें पारंगत एकतालीस हजार आठ सौ थे। अवधिज्ञानको धारण करनेवाले तीन हजार थे, तमजालको नष्ट करनेवाले केवली चार हजार। विक्रियाऋद्धिके धारक छह हजार थे ओर मनःपर्ययज्ञानके धारी चार हजार । और दो हजार श्रेष्ठ वादी मुनि थे। ५. Aमहा दित्तदित्तं; P महादित्तिदित्तं । ६. A समवसरणगउ । ९. १. A अट्ठमिधरणिहि; । २. AP°विवाणहं । ३. A°परिमाणई। ४. P जि । ५. A सिक्खयदिक्ख सिक्ख । ६. A केवलिहिं पहयतम'; P केवलिहि मि हयतम । ७. A वत्तहं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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