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________________ ३६८ महापुराण [६०. १२. १०असणि पडिय तहु जक्खहु उत्परि णेमित्तियहु दिण्ण रह हरि करि । परमिणिखेडु गामसयसहियउं गंदणवणमारुयमहिम हियउं । घत्ता-अण्णु वि रय॑णिहिं संचिउ मोत्तियदामहिं अंचिउ ॥ कि उ बभणु परिपुण्णउ पुणु पहु रजि णिसण्णउ ।।१२।। चंदकुंदणिहदहियहिं खीरहिं ___ गंगासिंधुमहासरिणीरहिं । अट्ठावयकलसहिं जिणु ण्हाणइ करिवि विइण्णई दीणहं दाणई । अप्पाणहु कुलकुवलयचंदें विहिय संति सिरिविजयणरिंदें। काल जंत तहिं णिवसंते पोयणपुरवरु परिपालंतें। जणणिपसाएं मंतु लहेप्पिणु पंचपरमपरमेट्ठि णवेप्पिणु । सुजतेय विज्जाहरसामिणि साहिय विज णहंगणगामिणि । जोव्वणभावजणियसिंगारइ एकहिं वासरि समउं सुतारइ । गउ णहेण वणि दुमदलणीलइ थिउ कामिणिकिलिकिंचियकीलइ । तावेत्तहि विहरणअणुराइउ भांमैरिविज लहेवि पराइउ । घत्ता-हित्तमहारिउछाएं इंदासणि खगराएं । आसुरियहि उप्पण्णउ लच्छिहि गुणसंपुण्ण उ ॥१३।। सातवां दिन आ गया। और ज्योतिषजनने जैसा कुछ पोदनपुरमें कहा था, वह वज्र उस स्वर्णयक्षके ऊपर गिर पड़ा। राजा कुम्भने उस नैमित्तिकको रथ, घोड़े और हाथी दिये। एक सौ ग्रामोंके साथ उसे पद्मिनीखेड नगर दिया, जो नन्दनवनकी हवासे महक रहा था। घत्ता-और भी उसे रत्नोंसे संचित और मोतियोंकी मालासे अंचित किया। उस ब्राह्मणको परिपूर्ण बना दिया और वह स्वयं पुनः राज्यमें स्थित हुआ ।।१२।। १३ चन्द्रमा और कुन्दपुष्पोंके समान दही और दूधोंसे, गंगा-सिन्धु महानदियोंके जलोंके एक सौ आठ कलशोंसे जिनका अभिषेक कर उसने दीनजनोंको दान दिया। कुलरूपी कुवलयके चन्द्र श्रीविजय नरेन्द्रने अपने कुलको शान्ति की। वहीं निवास करते हुए समय बीतनेपर और पोदनपुरका पालन करते हुए, माँके प्रसादसे मन्त्र पाकर, पांच परमेष्ठीको प्रणाम कर, अत्यन्त दोप्त विद्याधरोंकी स्वामिनी आकाशगामिनी विद्या सिद्ध की। एक दिन यौवनके भावसे उत्पन्न शृंगारवाली सुताराके साथ आकाशमार्गसे गया और वनमें वृक्षपत्रोंके घरमें कामिनी सुताराके साथ हंसने-रोनेकी कामक्रीड़ा करने लगा। इतनेमें विहार करने का अनुरागो, भ्रामरी विद्या प्राप्त करनेके लिए ( अशनिघोष ) यहां आ पहुँचा । __ घत्ता-जिसने शत्रुओंके माहात्म्यका अपहरण किया है, ऐसे इन्द्राशनि नामक विद्याधर राजाके द्वारा आसरी नामकी विद्याधरीसे उत्पन्न तथा लक्ष्मीके गणोंसे परिपूर्ण-॥१३॥ ६. AP रह करि हरि । ७. AP महमहियउं । ८. AP रयणहि । १३. १. AP"महाण इणीरहिं । २. A जिणण्हवणई । ३. AP भावरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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