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________________ -६०. १४. १५] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ३६९ चमरचंचपुरवइ रइराइउ असणिघोसु णामेण पराइउ । तेणासुररिउसुयसीमंतिणि दिट्ठ सुतार हारभूसियथणि । मोहिउ णावइ मोहणवेल्लिइ उरि विद्धउ मयरद्धयभल्लिइ। मायाहरिणु तेण देक्खालिउ पइ सइसामीवहु संचालिउ । रूवु धरिवि वरइत्तहु केरउ अज्झाहिय आणंदजणेरउ । अप्पणु झ त्ति जारु तहिं पत्तउ अमुणंतिइ घरिणीइ पवुत्ते । देव मंगाई धरंतु ण लज्जहि अन्ज वि बालत्तणु पडिवजहि । कीलणु तुज्झु तासु भयभंगउं कंपइ मरणविसंतुलु अंगउं । तं णिसुणिवि पररमणे भासिउं सुंदरि चारु चारु उवएसिउं ।। हउं परियत्तउ एण जि करुणे आउ जाहुं पुरवरु किं हरिणे । एम भणेवि चडाविय सुरहरि रेहइ चंदरेह णं जलहरि । णहि जंतें दाविउं ससरीरउं मुद्धइ तं जोइवि विवरेरउ । मुक्त धाह हा णाह भणंतिइ करजुयलेण सीसु पहणंतिइ । घत्ता-पुणु परपुरिसुण जोइउ एण णाहु विच्छोइउ ।। सुघडि विहि विहडावइ एवहिं को मेलावइ ।।१४।। अशनिघोष नामका रतिशोभित चमरचंचपुरका राजा आया। उसने हारसे भूषित स्तनवाली विद्याधरकी स्त्री सुताराको देखा। मोहिनीलताके समान उससे वह मोहित हो गया। हृदयमें वह कामदेवके भालेकी नोकसे विद्ध हो गया। उसने मायावी हरिण दिखाया और पतिको सतीके पाससे हटा दिया तथा सुताराको आनन्द उत्पन्न करनेवाले वरका रूप बनाकर वह जार स्वयं वहां पहुंचा। नहीं जानतो हुई पत्नी सुतारा बोली, "मृगोंको पकड़ते हुए आपको शर्म नहीं आती, तुम आज भी बचपनको छोड़ दो। तुम्हारा खेल होता है, उसका भयसे नाश होता है, मरणसे अस्तव्यस्त उसका शरीर कांपता है।" यह सुनकर परम रमण उसने कहा"हे सुन्दरी, तुमने सुन्दर उपदेश दिशा, इस करुणासे मैं सन्तुष्ट हुआ, आओ नगरवरको चलें, हरिणसे क्या ?" यह कहकर उसने उसे सुरविमानमें चढ़ा लिया। वह ऐसी शोभित हो रही थी मानो मेघमें चन्द्ररेखा हो। आकाशमें जाते हुए उसने अपना शरीर दिखाया। वह विपरीत रूप देखकर मुग्धाने दोनों हाथोंसे सिर पीटकर हे स्वामी कहते हुए दहाड़ मारी। पत्ता-उसने परपुरुषको नहीं देखा। इसने मेरे स्वामीका विछोह किया है। विधि सुघटितको अलग कर रहा है । इस समय कौन मिलाप कराता है ॥१४॥ १४. १. A दिक्खालिउ । २. AP परिणीइ पइ वुत्तउ। ३. AP मिगाई। ४. AP चंदलेह । ५. AP पुरुसु। ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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