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________________ ३६५ -६०.१०.५ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित समयंतरपवियारणि जाए सो जिणदासे जित्तु विवाए। दुप्परिणामें मुउ कयमायउ तहिं जि महिसु सविसाणउ जायउ। णासावंस विधिवि साहिउ लोएं लोणु भरेप्पिणु वाहिउ । कालें जंतें जायउ दुब्बलु एम जीउ भुंजइ दुक्कियफलु । गलियसत्ति सो णिव डिवि थकउ णायरणरणिउरुंब मुक्कउ । को वि ण तिणु णउ पाणिउं दावइ सिवि से रिह णियमणि भावइ । जइयहं हउ बलवत होतउ जइयतुं वलइउ भारु वहंत उ । तइयहुँ सयल देति महुं भोयणु __अज्ज ण केण वि किउ अवलोयण । कसमसत्ति दंतेहि दलेवर्ड पुरयणु मई कइयहं वि गिलिव्वउं । घत्ता-इय भरंतु माहिंदउ दुग्गइवेल्लीकंदउ ।। मरिवि भरेण सतामसु हुउ तहिं पिउवणि रक्खसु ।।९।। तेत्थु जि पुरि अण्णायविहूसिउ कुंभ णाम राणउ मंसासिउ । तेण सयलु काणणमृगु खद्धउ हरिणु ससउ सारंगु ण लद्धउ । चिंतइ सूयारउ णिरु णिक्कि उ विणु मासेण ण भुंजइ ध्रुव॑ नृवु । वणयरु गथि केत्थु पावमि पलु आहिंडवि मसाणधरणीयलु । आणिउं घल्लियडिंभयजंगलु जीहालोलहं पेउ जि मंगलु । और घमण्डी परिव्राजक अपने घर में तीन सन्ध्याओंमें स्नान करता हुआ रहता था। जिसमें शस्त्रान्तरोंपर विचार है, ऐसे विवाद में वह जिनदासके द्वारा जीत लिया गया। वह मायावी दुष्परिणामसे मर गया और वहीं सींगोंवाला भैंसा हुआ। उसकी नाक छेदकर साध लिया (वशमें कर लिया) गया और नमक लादकर उसे चलाया। समय बीतनेपर वह दुर्बल हो गया। जीव इसी प्रकार दुष्कृतका फल भोगता है। शक्ति क्षीण हो जाने पर वह गिरकर थक गया। नागरजन समहने उसे मुक्त कर दिया। कोई भी उसे न जल देता और न घास। वह भैंसा अपने मनमें क्रुद्ध होकर विचार करता है कि जब मैं बलवान् था और गोनीका भार ढोता था, तबतक सब लोग मुझे भोजन देते थे। परन्तु आज किसीने मेरी ओर देखा तक नहीं। मैं कसमसाकर दांतोंसे नष्ट कर दूंगा, मैं कब इन पुरजनोंको निगल सकूँगा। पत्ता-दुर्गतिरूपी बेलका अंकुर वह तामसी भैंसा यह स्मरण करता हुआ बोझसे मरकर वहीं मरघटमें राक्षस हुआ ||९|| उसी नगरोमें अज्ञानसे विभूषित कुम्भ नामका मांसभक्षक राजा था। उसने जंगलके सारे पशु खा लिये। जब हरिण, खरगोश और पक्षी नहीं मिले तो निर्दय रसोइया सोचता है कि बिना मांसके राजा निश्वयसे भोजन नहीं करेगा। वनपशु नहीं हैं, मांस कैसे पा सकता हूँ। मरघटकी धरतीपर घूमकर वह पड़े हुए बच्चेके मांसको ले आया। जो लोग जीभके लालची हैं ३. A हयमाण: Kalso records: हयमाणउ इति पाठान्तरे । ४. AP जाय उ सुविसाण उ । ५. AP णासावंसें । ६. P विधवि । ७. A तणु । ८. P रूसइ । ९. A करामसंतदंतेहिं । १०.१. P°मिगु । २. P धुउ णिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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