SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३६ १० इच्छेइ पेच्छइ णीसेसु ताम संतेण समियफुल्ला उद्देण महापुराण तिहुणु अनंतु आयासु जाम । चउथे तेण सीरा उहेण । घत्ता - ववगयरइ भरहेरावइ जं णरेहि आराहिउं ॥ तं सिद्धं सिवसुहुं लद्धडं पुप्फदंतजिणसा हिउं ||२३|| इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारे महाभव्वमरहाणुमणिए महाकइपुष्फयंतविरइए महाकव्वे अनंतणाह सुप्पह पुरिसुंत्तममहसूयण कहं तरं णाम अट्ठवण्यासमो परिच्छेओ समत्तो ॥ ५८ ॥ Jain Education International है, न मल है और न स्नान, जहाँ आत्मा के द्वारा आत्माको जाना जाता है । वह समस्त विश्वको वहीं तक इच्छा करता है और देखता है, जहाँ तक अनन्त त्रिभुवन और आकाश है । शान्त कामदेवका शमन करनेवाले उन चौथे बलभद्रने - घत्ता -- रतिसे रहित भरतश्रेष्ठकी जो मनुष्योंके द्वारा आराधना की जाती है, पुष्पदन्त जिनके द्वारा वह कथित सिद्ध शिवसुख उन्होंने प्राप्त किया ||२३|| [ ५८. २३.९ इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंसे युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित एवं महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका अनन्तनाथ सुप्रभ पुरुषोत्तम और मधुसूदन कथान्तर नामका अट्ठावनवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥५८॥ ४. AP अच्छइ । ५. A पुल्ला उहेण । ६. AP चोत्येण । ८. AP°पुरिसोत्तमं । ९. AP अट्टावण । For Private & Personal Use Only ७. AP तं लद्धडं सिवसुहुं सिद्धउं । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy