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-५८. २३.८]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित पुणु भणिउ वइरि रे सुप्पहासु करि केर म जाहि कयंतवासु । पालियतिखंडमंडियधरेण
पंडिजंपिउं पडिदामोयरेण । तुहुं सुप्पहु बिण्णि वि मज्झु दास को गवु रहंगे रे हयास । सरसलिलि रहंगसयाई अस्थि किं तेहिं धरिजइ मत्तहत्थि । मरु मरु मारतहु णत्थि खेउ संभरहि को वि णियइट्ठदेउ । ___ घत्ता-असमिच्छिवि पुणु णिभैच्छिवि चक्के रिउसिरु तोडिउ॥ हरिहंसें लद्धपसंसें णं रणतरहलु साडिउ ।।२२।।
२३ महिरक्खसि खद्धणिमासखंड पुरिसुत्तमेण मुत्ती तिखंड । पत्थिव पसु गिलइ ण कहिं मि धाइ ओहच्छइ केण वि सह ण जाइ । कालेण कण्हु गउ अवहिठाणु हलिणा चिंतिउ रिसिणाहणाणु । णिल्लुंचियकुंतलु करिविसीसु जायउ सोमप्पहुगुरुहि सीसु । परिसेसिवि भवसंसरणवित्ति थिउ भूसिवि मोक्खमहाधरित्ति। जहि मुक्खु णत्थि आहारवग्गु जहिं णि ण मंदिरु सयणेवग्गु । जहिं कामिणि काम ण रोस तोस जहिं दीसइ एक्कु वि णाहिं दोस ।
जहि वाहि ण विज्जु ण मलु ण ण्हाणु जहिं अॅप्प अप्पडं जाणमाणु । अंजनसे श्याम दुबले-पतले बलभद्रने शत्रुसे कहा, "हे सुप्रभास, सेवा करना स्वीकार कर लो, यमवासके लिए मत जा।" तब तीन खण्डोंसे अलंकृत धरतीका पालन करनेवाले प्रतिनारायण मधुसूदनने कहा-"तुम और सुप्रभ दोनों मेरे दास हो। हे हताश, चक्रका क्या गर्व करता है ? पानीमें सैकड़ों रथांग ( चक्रवाक ) होते हैं, क्या उनसे मतवाला हाथी पकड़ा जा सकता है ? मरमर, अब तुझे मारनेमें देर नहीं है, अपने किसी इष्टदेवको याद कर ले।"
घत्ता-इस प्रकार नहीं चाहते हुए भी उसने शत्रुको ललकारकर चक्रसे उसका सिर तोड़ दिया मानो प्रशंसा प्राप्त करनेवाले हरिरूपी हंसने रणरूपी वृक्षके फलको तोड़ दिया हो ॥२२॥
२३ जिसने मनुष्यमांसका खण्ड खाया है, ऐसी धरतीरूपी राक्षसीका पुरुषोत्तमने भोग किया। वह राजा और पशको निगल जाती है, कहीं भी नहीं जाती। यहीं रहती है, किसीके साथ नहीं जाती। समयके साथ नारायण सुप्रभ सातवें नरक गया। बलभद्रने ऋषभनाथके ज्ञानका चिन्तन .किया। अपने सिरको बालोंसे रहित कर सोमप्रभ मुनिका शिष्य हो गया । संसारमें भ्रमण करनेकी वृत्ति को नष्ट कर मोक्षरूपी महाभूमिको भूषित कर स्थित हो गया। जहां भूख नहीं है, न आहारवर्ग है, जहाँ न निद्रा है, न घर है और न स्वजन समूह है । जहाँ न कामिनी है, न काम है, न रोष है और न तोष है। जहां एक भी दोष दिखाई नहीं देता। जहाँ न व्याधि है, न विद्या
६. AP°मंडलवरेण । ७. A तो जंपिउं पडि; P ता जंपिउं पडि । ८. A महु मारतहु । ९. AP
णिभंछिवि । १०. Pणं णवसररुह पाडिउ । २३. १. AP have before this: बहुपाउ करिवि बहुभोयसत्तु, तमतमि पत्तउ पडिलच्छिकंतु । २. AP
सयणमग्गु । ३. AP अप्पइ अप्पडं जायमाणु ।
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