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________________ [५३.७.४ महापुराण दुरियविओयइ वारुणजोयइ। उप्पण्णो इणु बारहमो जिणु। हरिसोल्लियमणु पत्तो सुरयणु । चंपापुरेवरं णविऊणं घेरं। णिज्जियसयदलि जणणीकरयलि। बुद्धिणिसुंभयं मायाडिंभयं। गहिऊणं पहुं रइभिसिणीविहुँ। सक्केणं तउ कं मणिउं गउ। लग्गणमेरुणो सिहरं मेरुणो। गंतुं गयेमलि पंडुसिलायलि । घत्ता-णाहु थवेप्पिणु जियतारहारणीहारहिं । ण्ह विउ सुरिंदहिं घडवियलियचंदिरधारहिं ॥७॥ पुजिवि वंदिवि तिजगगुरुणिवराणियहि खेयर विसहर सुरेरमणिसंमाणियहि । तणयालोयणतुट्ठियहि तुच्छोयरिहि आणिवि देउ समप्पियउ करि मायरिहि। इंदें रुंदाणंदवसु तिह णच्चियउं जिह महिचलणे फणिउलु विभियकुंचियउं। पणविवि परमं परमपरं णहि चलियधओ सहुं परिवार सग्गवई सुरलोउ गओ। ५ अण्णहु पासि ण सत्थविही कत्थइ सुणइ सव्वउ कलउ सलक्खणउ अप्पणु मुणइ । कम्पित है, ऐसे चतुर्दशीके दिन, पापसे विमुक्त चारणयोगमें बारहवें जिनवर ( सूर्य ) उत्पन्न हुए। हर्षसे उल्लसित मन देवसमूह वहां पहुंचा, और चम्पापुर वर तथा घरको प्रणाम कर कमलकुलको जीतनेवाले जननीके करतलमें, बुद्धिको भ्रममें डालनेवाले मायावी बालकको रखकर, रतिरूपी कमलिनीके लिए सूर्य प्रभुको लेकर, इन्द्र 'कु' कहकर गजको प्रेरित कर आकाशको छूनेवाले सुमेरु पर्वतके शिखरपर जानेके लिए चला । मलरहित पाण्डुक शिलातलपर पत्ता-स्वामीको स्थापित कर, स्वच्छ हार और नीहारोंको जीतनेवाली घड़ोंसे गिरती हुई चांदनीके समान धाराओंसे सुरेन्द्रोंने उनका अभिषेक किया ॥७॥ उनकी पूजा और वन्दना कर; त्रिजगके श्रेष्ठ राजाको रानी, विद्याधर, विषधर और देवस्त्रियोंके द्वारा सम्माननीय पत्रको देखकर सन्तुष्ट होनेवाली कृशोदरी माताके हाथमें लाकर देवको दे दिया। इन्द्रने विशाल आनन्दके वशीभूत होकर इस प्रकार नृत्य किया, कि जिससे धरती कांपनेके कारण नागकुल विस्मयसे संकुचित हो गया। परमश्रेष्ठ जिनको प्रणाम कर, चंचलध्वज स्वर्गपति ( इन्द्र ) अपने परिवारके साथ इन्द्रलोक चला गया। वह किसी दूसरेके पास कहीं भी २. A पुरवरे । ३. A घरे । ४. A तं भणिओ; P कुं भणियो। ५. A गयगले । ६. A has ता before णाहु। ८. १. A सुररमणो'; सुरवररमणी । २. A छउओयरिहि; P तुच्छओयरिहि । ३. AP विभय । ४. A णहचलिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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