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________________ २४७ -५३.७.३] महाकवि पुष्पदन्त विरचित धत्ता-सिविणय जोइवि देविइ णियणाहह भासिउं । तेण वि तप्फलु णिञ्चप्फलु तहि उवएसिउं ॥५॥ णाणचक्खुणा जो णिरिक्खए जो जयं असेसं पि रक्खए। पोसए पिए दुव्वसामिए सुंदरी हले मज्झखामिए । सो तुमम्मि होही जिणेसरो भवजीवराईवणेसरो।। सक्कपेसिया देविया सिरी कति कित्ति बुद्धी सई हिरी। . आगया घरं देहसोहणं ताहिं तम्मि तिस्सा कयं घणं । तिण्णि तिणि मासे धणी वसो वुट्ठओ सुर्वण्णंभपाउसो । मेहजाललीलापयासए पावणम्मि आसाढमासए । छ?ए दिणे किण्हपक्खए तित्थणाहसंखम्मि रिक्खए। चरणकमलजुयणवियपण्णओ गब्भकंजकोसे णिसण्णओ। पुणु पयत्थसममासमेरओ णिच्च सवइ कणयं कुबेरओ । धत्ता-चउसंखाहिइ जलणिहिपण्णासइ ढलियइ ॥ पल्लहु तिजइ भायम्मि धम्मि परिगलियइ ॥६॥ गइ सेयंसइ मासइ फग्गुणि कंपियतिहुवणि सिवसरहंसइ । पक्खइ तमघणि । चउदहामि दिणि। पत्ता-स्वप्नों को देखकर देवीने अपने स्वामीसे कहा और उसने भी उसे उसका नित्यफलवाला-फल बताया ॥५॥ जो ज्ञानरूपी आँखसे देखते हैं, जो अशेष जगकी रक्षा करते हैं, हे दुबकी तरह श्यामांगी, कृशोदरी सुन्दरी, पोषण देनेवाली प्रिये, ऐसे वह भव्य जीवरूपी कमलोंके सूर्य जिनेश्वर तुममें उत्पन्न होंगे। इन्द्रके द्वारा प्रेषित देवियां श्री, कान्ति, कीर्ति, बुद्धि, सती और ह्री घर आयीं, और उन्होंने उसका उसी समय खुब देह शोधन किया। मेघजालकी लीलाको प्रकाशित करनेवाले, पवित्र आषाढ़ माहके कृष्णपक्षके छठोके दिन, चौबीसवें शतभिषा नक्षत्रमें जिनके चरणकमल युगलको नाग प्रणाम करता है, ऐसे वह गर्भरूपी कमलकोशमें स्थित हो गये। फिरसे कुबेरने नौ माहकी अवधि तक नित्य धनकी वर्षा की। पत्ता-यौवन सागर समय बीतनेपर, अन्तिम पल्यके तीसरे सागरमें धर्मका उच्छेद होने पर-॥६॥ . शिवरूपी सरोवरके हंस श्रेयांसके चले जानेपर, फागुन माहके कृष्णपक्षमें, जिसमें त्रिभुवन ६. A तं फलु णिच्चफलु । ६. १. A सुवणंबुपाउसो । २. A कण्हपक्खए । ७. १. P सिवभर। Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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